मोहिनी एकादशी व्रत कथा

धार्मिक ग्रंथों में मोहिनी एकादशी की तिथि अत्यंत शुभ और पवित्र मानी गई है|

इस दिन एकादशी का व्रत उपवास रखने से पूरे वैशाख मास के दान पुण्य का फल मिलता है|

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष कि यह तिथि समस्त पापों और दुखों का नाश करने वाली सौभाग्य और धन देने वाली है मोहिनी एकादशी की व्रत कथा एक समय की बात है|

सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नाम का एक चंद्रवंशी राजा राज करता था और उसी नगर में धन-धान्य से संपन्न बहुत पुण्य करने वाला एक धनपाल नाम का वैसे रहता था|

वह अत्यंत धर्मात्मा और विष्णु भक्त था उसने अनेक नगरों में भोजनालय प्याऊ कुवे धर्मशाल आदि बनवाएं सड़कों पर आम जामुन जामुन नीम आदि अनेक वृक्ष भी लगवाए|

उस धनपाल नाम वैश्य के 5 पुत्र भी थे सोमना बुद्धि मेधावी सुकृति दृष्ट बुद्धि इनमें से पांचवां पुत्र दृष्ट बुद्धि महा पापी था|

वह पुत्र आदि को नहीं मानता था वह दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहता जुआ खेलता स्त्री के साथ भोग करता था और मधुमास का सेवन भी करता था|

इसी प्रकार अनेकों कर्मों से वह अपने पिता के धन को नष्ट करता था|

इसी कारणों से त्रस्त होकर उसके पिता ने उसको घर से निकाल दिया घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने कपड़े बेचकर निर्वाह करने लगा|

जब सब कुछ नष्ट हो गया तो वैश्या और दुराचारी साथियों ने भी उसका साथ छोड़ दिया|

अब वह भूख प्यास से बहुत दुखी रहने लगा उसका कोई सहारा नहीं था इसलिए उसने चोरी करना सीख लिया एक बार तो वह पकड़ा गया|

तो सब ने उसे वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया मगर दूसरी बार वह पकड़ में आ गया|

राजा की आज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया कारागार में उसने बहुत दुख रहे राजा ने उसे नगरी से निकल जाने को कहा वह नगरी से निकलकर वन में चला गया|

वहां वह पशु पक्षियों को मारकर खाने लगा कुछ समय के बाद वह एक बहेलिया बन गया और धनुष बाण लेकर पशु पक्षियों को मारकर खाने लगा|

एक दिन भूख प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कोणती ऋषि के आश्रम में पहुंच गया उस समय वैशाख महीना था|

ऋषि जी गंगा स्नान करके आ रहे थे कॉग्निटी ऋषि के भीगे वस्त्रों के छींटे जब उस पर पड़े तो उसे सद्बुद्धि आई वह मुनि जी से हाथ जोड़कर कहने लगा|

हे मुनि! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन वाला उपाय बताइए|

उसके धीन वचन सुनकर मुनि जी ने प्रसन्न होकर कहा तुम वैशाख शुक्ल पक्ष की मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो इससे तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे|

मुनि के ऐसे वचन सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार उसने व्रत किया|

इस व्रत के प्रभाव से उसके सारे पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक में चला गया|

अतः इस व्रत से मोह आदि नष्ट हो जाते हैं हमें इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है|

इसके महत्व को पढ़ने अथवा सुनने से 1000 गोदान का फल प्राप्त होता है|

एकादशी व्रत की कथा वैशाख मास में दान करने के समान है इसलिए हर मनुष्य को यह व्रत कथा पढ़नी या सुननी चाहिए|