रक्षा बंधन त्यौहार का इतिहास
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भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित रक्षाबंधन ये त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है|
रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है| इस त्यौहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है|
होली, दीवाली की तरह इस त्यौहार को भी भारत में धूमधाम से मनाया जाता है| भारत में रक्षाबंधन मनाने के कई धार्मिक और ऐतिहासिक कारण है|
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं | रक्षाबंधन का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है।
वह भी तब जब आर्य समाज में सभ्यता की रचना की शुरुआत मात्र हुई थी।
रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है| इस त्यौहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है|
होली, दीवाली की तरह इस त्यौहार को भी भारत में धूमधाम से मनाया जाता है| भारत में रक्षाबंधन मनाने के कई धार्मिक और ऐतिहासिक कारण है|
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं | रक्षाबंधन का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है।
वह भी तब जब आर्य समाज में सभ्यता की रचना की शुरुआत मात्र हुई थी।
रक्षाबंधन पर्व पर जहाँ बहनों को भाइयों की कलाई में रक्षा का धागा बाँधने का बेसब्री से इंतजार है, वहीं दूर-दराज बसे भाइयों को भी इस बात का इंतजार है कि उनकी बहना उन्हें राखी भेजे।
उन भाइयों को निराश होने की जरूरत नहीं है, जिनकी अपनी सगी बहन नहीं है, क्योंकि मुँहबोली बहनों से राखी बंधवाने की परंपरा भी काफी पुरानी है।
उन भाइयों को निराश होने की जरूरत नहीं है, जिनकी अपनी सगी बहन नहीं है, क्योंकि मुँहबोली बहनों से राखी बंधवाने की परंपरा भी काफी पुरानी है।
असल में रक्षाबंधन की परंपरा ही उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं। भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो लेकिन उसी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है।
इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत की उत्पत्ति लगभग 6 हजार साल पहले बताई गई है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।
इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत की उत्पत्ति लगभग 6 हजार साल पहले बताई गई है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।
यहाँ एक विस्तृत तालिका है जो रक्षाबंधन त्योहार 2024 के बारे में है:
त्योहार का नाम | रक्षा बंधन 2024 |
---|---|
तारीख | 19 अगस्त 2024 |
अन्य नाम | राखी, राखी पूर्णिमा |
महत्व | भाइयों और बहनों के बीच के बंधन का जश्न मनाता है |
चाँद्र मास | श्रावण (शुक्ल पक्ष पूर्णिमा) |
अवधि | दिन-रात का त्योहार |
अनुष्ठान | बहनें अपने भाइयों की कलावाँ पर राखी बांधती हैं, उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं, आरती करती हैं, और अपने भाइयों के भलाई के लिए प्रार्थना करती हैं |
पूजा की तैयारी | बहनें राखीयाँ खरीदती हैं या बनाती हैं, मिठाइयों की तैयारी करती हैं, और त्योहारी वस्त्र पहनती हैं |
कथा और पौराणिक कथा | भगवान कृष्ण और द्रौपदी की पौराणिक कथाओं से जुड़ा है |
पारंपरिक प्रसाद | मिठाई, उपहार, और मुद्रास्पर्श |
क्षेत्रीय विविधताएँ | आचारण क्षेत्रों के बीच भिन्न हो सकते हैं |
पॉपुलर क्षेत्र | भारत भर में मनाया जाता है, क्षेत्रीय विविधताओं के साथ |
उद्देश्य | भाइयों और बहनों के बीच प्यार और सुरक्षा के बंधन को मजबूत करना |
अनुष्ठानिक योग्यता | राखी सुरक्षा का प्रतीक होती है, और भाइयों का वादा होता है कि वे अपनी बहनों की सुरक्षा करें |
परिवारी भागीदारी | परिवार के सभी सदस्यों की भागीदारी के साथ एक परिवारी त्योहार है |
सांस्कृतिक महत्व | भाइयों और बहनों के बीच के मजबूत संबंध और प्यार का प्रतिबिम्ब करता है |
भक्तिमात्रिता | बच्चों के प्रति प्यार और कृतज्ञता के दिन का त्योहार |
वामन अवतार कथा
असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था|
राजा बलि के आधिपत्य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे|
भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए|वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी|
पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया| अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें|
राजा बलि के आधिपत्य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे|
भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए|वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी|
पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया| अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें|
भगवान वामन ने ऐसा ही किया| इस तरह देवताओं की चिंता खत्म हो गई| वहीं भगवान राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्न हुए|
उन्होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया| बलि की इच्छा पूर्ति के लिए भगवान को पाताल जाना पड़ा|
भगवान विष्णु के पाताल जाने के बाद सभी देवतागण और माता लक्ष्मी चिंतित हो गए
अपने पति भगवान विष्णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्मी गरीब स्त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी|
बदले में भगवान विष्णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया| उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी और मान्यता है कि तभी से रक्षाबंधन मनाया जाने लगा|
उन्होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया| बलि की इच्छा पूर्ति के लिए भगवान को पाताल जाना पड़ा|
भगवान विष्णु के पाताल जाने के बाद सभी देवतागण और माता लक्ष्मी चिंतित हो गए
अपने पति भगवान विष्णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्मी गरीब स्त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी|
बदले में भगवान विष्णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया| उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी और मान्यता है कि तभी से रक्षाबंधन मनाया जाने लगा|
भविष्य पुराण की कथा
एक बार देवता और दानवों में 12 सालों तक युद्ध हुआ लेकिन देवता विजयी नहीं हुए| इंद्र हार के डर से दुखी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास गए|
उनके सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षा सूत्र तैयार किए|
फिर इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा और समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई| यह रक्षा विधान श्रवण मास की पूर्णिमा को संपन्न किया गया था.
उनके सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षा सूत्र तैयार किए|
फिर इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा और समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई| यह रक्षा विधान श्रवण मास की पूर्णिमा को संपन्न किया गया था.
द्रौपदी और श्रीकृष्ण की कथा
महाभारत काल में कृष्ण और द्रौपदी का एक वृत्तांत मिलता है|जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई|
द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उसे उनकी अंगुली पर पट्टी की तरह बांध दिया|
यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था|
श्रीकृष्ण ने बाद में द्रौपदी के चीर-हरण के समय उनकी लाज बचाकर भाई का धर्म निभाया था|
द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उसे उनकी अंगुली पर पट्टी की तरह बांध दिया|
यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था|
श्रीकृष्ण ने बाद में द्रौपदी के चीर-हरण के समय उनकी लाज बचाकर भाई का धर्म निभाया था|
रक्षा बंधन कब से शुरू हुआ
बादशाह हुमायूं और कमर्वती की कथा:-
मुगल काल में बादशाह हुमायूं चितौड़ पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ रहा था| ऐसे में राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा वचन ले लिया|
फिर क्या था हुमायूं ने चितौड़ पर आक्रमण नहीं किया|
यही नहीं आगे चलकर उसी राख की खातिर हुमायूं ने चितौड़ की रक्षा के लिए बहादुरशाह के विरूद्ध लड़ते हुए कर्मवती और उसके राज्य की रक्षा की|
फिर क्या था हुमायूं ने चितौड़ पर आक्रमण नहीं किया|
यही नहीं आगे चलकर उसी राख की खातिर हुमायूं ने चितौड़ की रक्षा के लिए बहादुरशाह के विरूद्ध लड़ते हुए कर्मवती और उसके राज्य की रक्षा की|
सिकंदर और पुरू की कथा:-
सिकंदर की पत्नी ने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास यानी कि राजा पोरस को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया|
पुरूवास ने युद्ध के दौरान सिकंदर को जीवनदान दिया| यही नहीं सिकंदर और पोरस ने युद्ध से पहले रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी|
युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार के लिए हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रुक गए और वह बंदी बना लिया गया|
सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया|
पुरूवास ने युद्ध के दौरान सिकंदर को जीवनदान दिया| यही नहीं सिकंदर और पोरस ने युद्ध से पहले रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी|
युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार के लिए हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रुक गए और वह बंदी बना लिया गया|
सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया|
साल 2024 में रक्षाबंधन का शुभ महूर्त – 19 अगस्त 2024
यहाँ तालिका रूप में दी गई जानकारी है:
राखी बांधने का मुहूर्त | रक्षा बंधन अपराहन मुहूर्त (अपराह्न मुहूर्त) | रक्षा बंधन प्रदोष मुहूर्त |
---|---|---|
प्रारंभ समय 13:34:40 से 21:07:31 तक | 13:42:42 से 16:19:24 तक | 18:56:06 से 21:07:31 तक |
समाप्ति समय | 21:07:31 | 21:07:31 |
अवधि | 7 घंटे और 32 मिनट | – |
भारत में रक्षा बंधन 2024 के दौरान राखी बांधने के लिए मान्य मुहूर्त हैं।
FAQs
2024 में रक्षा बंधन कब है?
सोमवार, 19 अगस्त 2024
रक्षा बंधन क्यों मानते है?
रक्षा बंधन भारत का एक ऐसा त्योहार है जो भाई और बहनों के बीच प्यार और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है
रक्षा बंधन कब से शुरू हुआ?
शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। उसी समय से राखी बांधने का क्रम शुरु हुआ।