बाबा अमरनाथ की यात्रा
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अमरनाथ की यात्रा जून या जुलाई महीने में शुरू होती है और रक्षाबंधन को छड़ी मुबारख मेले के साथ समाप्त होती है ।यह यात्रा हिंदू देव और सृष्टि के संहार, भगवान शिव के भक्तों द्वारा तै की जाती है।
इस यात्रा में तीर्थयात्री कई कठिनाइयों का सामना करते हैं।
यहाँ का खराब मौसम और पहलगाम से शुरु होती चढाई इस यात्रा को और भी कठिन बनाते हैं।
यात्रा के लिए देशभर से पहुंच रहे शिव भक्तों में जबरदस्त उत्साह होता है।
इस यात्रा में तीर्थयात्री कई कठिनाइयों का सामना करते हैं।
यहाँ का खराब मौसम और पहलगाम से शुरु होती चढाई इस यात्रा को और भी कठिन बनाते हैं।
यात्रा के लिए देशभर से पहुंच रहे शिव भक्तों में जबरदस्त उत्साह होता है।
अमरनाथ की यात्रा को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्योंकि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।
पुराणों में वर्णित है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, आप अजर-अमर हैं और मुझे हर जन्म के बाद नए स्वरूप में आकर फिर से वर्षों की कठोर तपस्या के बाद आपको प्राप्त करना होता है।
मेरी इतनी कठोर परीक्षा क्यों? और आपके कंठ में पड़ी यह नरमुण्ड माला तथा आपके अमर होने का रहस्य क्या है?
पुराणों में वर्णित है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, आप अजर-अमर हैं और मुझे हर जन्म के बाद नए स्वरूप में आकर फिर से वर्षों की कठोर तपस्या के बाद आपको प्राप्त करना होता है।
मेरी इतनी कठोर परीक्षा क्यों? और आपके कंठ में पड़ी यह नरमुण्ड माला तथा आपके अमर होने का रहस्य क्या है?
शिव ने पार्वती को इसी परम पावन अमरनाथ की गुफा में अपनी साधना की अमर कथा सुनाई थी, जिसे हम अमरत्व कहते हैं।
भगवान शंकर ने माता पार्वती से एकांत और गुप्त स्थान पर अमर कथा सुनने को कहा जिससे कि अमर कथा कोई अन्य जीव न सुन पाए। क्योंकि जो कोई भी इस अमर कथा को सुन लेता है, वह अमर हो जाता।
पुराणों के मुताबिक, शिव ने पार्वती को इसी परम पावन अमरनाथ की गुफा में अपनी साधना की अमर कथा सुनाई थी, जिसे हम अमरत्व कहते हैं।
कहते हैं भगवान भोलेनाथ ने अपनी सवारी नंदी को पहलगाम पर छोड़ दिया |
जटाओं से चंद्रमा को चंदनवाड़ी में अलग कर दिया और गंगाजी को पंचतरणी में तथा कंठाभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया।
जटाओं से चंद्रमा को चंदनवाड़ी में अलग कर दिया और गंगाजी को पंचतरणी में तथा कंठाभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया।
इस प्रकार इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा। अगला पड़ाव गणेश पड़ता है|
इस स्थान पर बाबा ने अपने पुत्र गणेश को भी छोड़ दिया था, जिसको महागुणा का पर्वत भी कहा जाता है।
पिस्सू घाटी में पिस्सू नामक कीड़े को भी त्याग दिया।
इस स्थान पर बाबा ने अपने पुत्र गणेश को भी छोड़ दिया था, जिसको महागुणा का पर्वत भी कहा जाता है।
पिस्सू घाटी में पिस्सू नामक कीड़े को भी त्याग दिया।
इस प्रकार महादेव ने जीवनदायिनी पांचों तत्वों को भी अपने से अलग कर दिया।
इसके बाद मां पार्वती साथ उन्होंने गुप्त गुफा में प्रवेश कर किया और अमर कथा मां पार्वती को सुनाना शुरू किया।
इसके बाद मां पार्वती साथ उन्होंने गुप्त गुफा में प्रवेश कर किया और अमर कथा मां पार्वती को सुनाना शुरू किया।
कथा सुनते-सुनते देवी पार्वती को नींद आ गई और वह सो गईं, जिसका शिवजी को पता नहीं चला।
भगवन शिव अमर होने की कथा सुनाते रहे। उस समय दो सफेद कबूतर शिव जी से कथा सुन रहे थे और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे।
शिव जी को लगा कि माता पार्वती कथा सुन रही हैं और बीच-बीच में हुंकार भर रहीं हैं।
इस तरह दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली।
भगवन शिव अमर होने की कथा सुनाते रहे। उस समय दो सफेद कबूतर शिव जी से कथा सुन रहे थे और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे।
शिव जी को लगा कि माता पार्वती कथा सुन रही हैं और बीच-बीच में हुंकार भर रहीं हैं।
इस तरह दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली।
कथा समाप्त होने पर शिव का ध्यान पार्वती की ओर गया, जो सो रही थीं।
जब महादेव की दृष्टि कबूतरों पर पड़ी, तो वे क्रोधित हो गए और उन्हें मारने के लिए आगे बड़े।
इस पर कबूतरों ने भगवान शिव से कहा कि, ‘हे प्रभु हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी।
इस पर शिव जी ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप निवास करोगे।
जब महादेव की दृष्टि कबूतरों पर पड़ी, तो वे क्रोधित हो गए और उन्हें मारने के लिए आगे बड़े।
इस पर कबूतरों ने भगवान शिव से कहा कि, ‘हे प्रभु हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी।
इस पर शिव जी ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप निवास करोगे।
अत: यह कबूतर का जोड़ा अजर-अमर हो गया। कहते हैं आज भी इन दोनों कबूतरों का दर्शन भक्तों को यहां प्राप्त होते हैं।
और इस तरह से यह गुफा अमर कथा की साक्षी हो गई व इसका नाम अमरनाथ गुफा के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
और इस तरह से यह गुफा अमर कथा की साक्षी हो गई व इसका नाम अमरनाथ गुफा के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
इस दौरान श्रद्धालु बाबा भोले के जयघोष लगाकर पूरे माहौल को भक्तिमय बनाते है ।
श्रद्धालुओं के हाथ में डमरू, त्रिशूल आदि होता है ।
बालटाल और पहलगाम यात्रा ट्रैक है और यहाँ का मौसम बड़ा सुहाना रहता है यहाँ यात्रियों को राहत के लिए यात्री शिविर लगाए होते है।
मौसम साफ रहने से पारंपरिक बालटाल और पहलगाम ट्रैक पर यात्रा जारी रहती है।
श्रद्धालुओं के हाथ में डमरू, त्रिशूल आदि होता है ।
बालटाल और पहलगाम यात्रा ट्रैक है और यहाँ का मौसम बड़ा सुहाना रहता है यहाँ यात्रियों को राहत के लिए यात्री शिविर लगाए होते है।
मौसम साफ रहने से पारंपरिक बालटाल और पहलगाम ट्रैक पर यात्रा जारी रहती है।
अमरनाथ यात्रा दौरान बर्फ से ढक्की पहाडियाँ और अमरनाथ की खूबसूरती इस यात्रा को और भी सुन्दर बनाते हैं।
वैसे तो यहाँ साल के बारह महीने बर्फ पडती है, पर केवल जून, जलाई और अगस्त के महीने में यहाँ बर्फ नहीं होती, जिसके कारण यह मंदिर साल के केवल कुछ ही महीनों के लिए खुला रहता है।
वैसे तो यहाँ साल के बारह महीने बर्फ पडती है, पर केवल जून, जलाई और अगस्त के महीने में यहाँ बर्फ नहीं होती, जिसके कारण यह मंदिर साल के केवल कुछ ही महीनों के लिए खुला रहता है।
पवित्र बाबा श्री अमरनाथ की वार्षिक यात्रा पर आने वाले भक्तों के लिए जगह-जगह भंडारे लगाए जाते हैं।
इन भंडारों में खाने-पीने के प्रबंध के साथ हर सुविधा का प्रबंध रखा जाता है।
इन सब सुविधाओं के मिलने से यात्रियों में खुशी का माहौल रहता है।
इन भंडारों में खाने-पीने के प्रबंध के साथ हर सुविधा का प्रबंध रखा जाता है।
इन सब सुविधाओं के मिलने से यात्रियों में खुशी का माहौल रहता है।
पहलगाम का नुनवन बेस कैंप जहां आजकल 24 घंटे रौनक रहती है, यहाँ आने वाले शिव भक्तों के लिए सुविधा का खास ख्याल रखा जाता है।
गौरी शंकर विशाल भंडारे के प्रधान विशाल बंसल ने कहा कि वह कई वर्षों से यात्रा के दौरान भक्तों के लिए भंडारा लगाते आ रहे हैं। भोले के भक्तों को कोई असुविधा न हो, उसका पूरा खयाल रखा जाता है।
गौरी शंकर विशाल भंडारे के प्रधान विशाल बंसल ने कहा कि वह कई वर्षों से यात्रा के दौरान भक्तों के लिए भंडारा लगाते आ रहे हैं। भोले के भक्तों को कोई असुविधा न हो, उसका पूरा खयाल रखा जाता है।
बाबा अमरनाथ की यात्रा करने आ रहे भक्तों के लिए खाने-पीने के एक से बढ़कर एक पकवान बनाए जाते हैं।
इसमें श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के जारी नियमों का खास पालन किया जाता है।
इसमें श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के जारी नियमों का खास पालन किया जाता है।
यात्रियों के रहने की भी व्यवस्था और जरूरी दवाइयां भी रखी जाती हैं।
हर रोज सुबह यात्रा पर जाने वाले भक्तों में विशेष तौर से ड्राई फ्रूट, फेस लोशन आदि चीजें भी बांटी जाती हैं।
उन साधुओं के लिए जो नंगे पैर आते हैं, उन्हें नए स्पोर्ट्स शूज (जूते) भी रखे गए हैं।
श्री अमरनाथ की यात्रा के दौरान 14000 फुट तक की ऊंचाई तक चढ़ाई करनी पड़ती है।
यात्री ऊंचाई के कारण बीमार पड़ सकते हैं। ऐसे में कई ऐसी बातें हैं जिनका ध्यान आपको यात्रा के वक्त जरूर रखना होगा।
यात्री ऊंचाई के कारण बीमार पड़ सकते हैं। ऐसे में कई ऐसी बातें हैं जिनका ध्यान आपको यात्रा के वक्त जरूर रखना होगा।
अमरनाथ यात्रा ऊंचाई पर होने वाली परेशानियों के लक्षण निम्नलिखित हैं
भूख न लगना, मतली, उल्टी, थकावट, कमजोरी, चक्कर आना और सोने में कठिनाई, देखने में बाधा
मूत्राश्य का ठीक से कार्य न करना, आंतों का ठीक से काम न करना, गतिविधियों में तालमेल न रहना, शरीर के एक हिस्से में लकवा
चेतना का लोप हो जाना और मानसिक स्थिति में बदलाव होना।
मूत्राश्य का ठीक से कार्य न करना, आंतों का ठीक से काम न करना, गतिविधियों में तालमेल न रहना, शरीर के एक हिस्से में लकवा
चेतना का लोप हो जाना और मानसिक स्थिति में बदलाव होना।
इसके अलावा सुस्ती, सीने में जकड़न, कंजेशन, तेजी से सांस लेना और हृदय की धड़कन बढ़ना।
यदि ऊंचाई के कारण हुई तकलीफ का फौरन इलाज न हो, वह चंद घंटों में जानलेवा साबित हो सकती है।
यदि ऊंचाई के कारण हुई तकलीफ का फौरन इलाज न हो, वह चंद घंटों में जानलेवा साबित हो सकती है।
अमरनाथ यात्रा के दौरान ऊंचाई के कारण होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए क्या करें
1. यात्रा की तैयारी करने के लिए शारीरिक तौर पर चुस्त-दुरूस्त रहें –
यात्रा से कम से कम एक महीना पहले तैयारी के तौर पर 4-5 किलोमीटर सुबह/शाम की सैर शुरू करने की सलाह दी जाती है।
यात्रा से कम से कम एक महीना पहले तैयारी के तौर पर 4-5 किलोमीटर सुबह/शाम की सैर शुरू करने की सलाह दी जाती है।
2. शरीर की ऑक्सीजन संबंधी दक्षता को बेहतर बनाने के लिए गहरे सांस लेने का अभ्यास और योग, विशेषकर प्राणायाम शुरू कीजिए।
3. ऊंचाई पर जाने से पहले अपने चिकित्सक से जांच कराएं, कहीं आपको को स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी तो नहीं।
4. ऊंचाई पर चढ़ते समय धीमे चलें और ढलान आने पर कुछ देर आराम करने के लिए रुकिए।
5. अपनी सामान्य क्षमता से अधिक बल लगाने से बचिए।
6. विविध स्थानों पर आवश्यक तौर पर आराम के लिए रुकिए, टाइम लॉगिंग सुनिश्चित कीजिए और अगले स्थान की ओर बढ़ते समय डिस्प्लै बोडर्स पर अंकित चलने के आदर्श समय जितना ही वक्त लगाइये।
7. कोई भी दवा लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श लीजिए।
8. पानी की कमी और सिरदर्द से बचने के लिए खूब पानी पीजिए।एक दिन में लगभग 5 लीटर पानी पीजिए।
हर हर महादेव | जय बाबा बर्फानी
