बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम
हिमाचल प्रदेश की मूल धार्मिक प्रवृति व संस्कृति में उच्च भाव केंद्रों के रूप में अनेक सिद्ध तीर्थ प्रतिष्ठित हैं। इनमें बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम दियोटसिद्ध उत्तरी भारत का दिव्य सिद्ध पीठ हैं।
हमीरपुर जिला के धौलागिरी पर्वत के सुरम्य शिखर पर सिद्ध बाबा बालक नाथ जी की पावन गुफा स्थापित है। सिद्ध पीठ में देश व विदेश से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्वालु बाबा जी का आशीर्वाद के लिए पहुंचते हैं।
इसका प्रबंध हिमाचल सरकार के अधीन है। हमारे देश में अनेकानेक देवी-देवताओं के अलावा नौ नाथ और चौरासी सिद्ध भी हुए हैं, जो सहस्रों वर्षों तक जीवित रहते हैं और आज भी अपने सूक्ष्म रूप में वे लोक में विचरण करते हैं
भागवत पुराण के छठे स्कंद के सातवें अध्याय में वर्णन आता है कि देवराज इंद्र की सेवा में जहां देवगण और अन्य सहायकगण थे, वहीं सिद्ध भी शामिल थे। नाथों में गुरु गोरखनाथ का नाम आता है।
इसी प्रकार 84 सिद्धों में बाबा बालक नाथ जी का नाम आता है। बाबा बालक नाथ जी के बारे में प्रसिद्ध है कि इनका जन्म युगों-युगों में होता रहा है। प्राचीन मान्यता के अनुसार बाबा बालक नाथ जी को भगवान शिव का अंश अवतार ही माना जाता है।
श्रद्धालुओं में ऐसी धारणा है कि बाबा बालक नाथ जी 3 वर्ष की अल्पायु में ही अपना घर छोड़ कर चार धाम की यात्रा करते-करते शाहतलाई नामक स्थान पर पहुंचे थे।
1987 में हुआ था बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम ट्रस्ट का गठन
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कैसे पहुंचें बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम मंदिर ?
धौलगिरी पर्वत के सुरम्य शिखर पर प्रतिष्ठित बाबा जी की पावन गुफा की जिला मुख्यालय से हमीरपुर से दूरी 45 किलोमीटर, शिमला से भोटा-सलौणी 170 किलोमीटर और बरंठी से शाहतलाई होते हुए 155 किलोमीटर है।
चंडीगढ़ से ऊना-बड़सर, शाहतलाई के रास्ते 185 कलोमीटर है। पठानकोट से कांगड़ा एनएच 103 के रास्ते 200 किलोमीटर है। ऊना तक अन्य राज्यों से रेलवे सुविधा उपलब्ध है। ऊना से दियोटसिद्ध तक 65 किलोमीटर का सफर सड़क से तय करना पड़ता है।
दियोटसिद्ध के सिद्ध नगर की समतल तलहटी में सरयाली खड्ड के किनारे शाहतलाई नामक कस्बा स्थापित है। सिद्ध बाबा बालक नाथ जी दियोटसिद्ध में अपना धाम प्रतिष्ठित करने से पूर्व शाहतलाई की अपनी तपोस्थली व कर्मस्थली को लंबे अरसे तक रखा है।
शाहतलाई जिला बिलासपुर में स्थित है जबकि दियोटसिद्ध जिला हमीरपुर में स्थित है। बिलासपुर से शाहतलाई से दूरी 64 किलोमीटर व दियोटसिद्ध पांच किलोमीटर है।
पुराणों एवं साहित्य में संदर्भ बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम
पुराणों एवं साहित्य में सिद्ध परंपरा के पर्याप्त संदर्भ सुलभ है। पतंजलि योग सूत्र के विभूति पाद उल्लेख के अनुसार सिद्धों के दर्शन समान्यता नहीं होते हैं परंतु मनुष्य अपने शरीर के ऊपरी भाग में मन संयम करते हैं तब सिद्धों के दर्शन सुलभ होते हैं।
बाबा बालक नाथ जी को कलियुग का साक्षात अवतार सर्वोच्च सिद्ध माना गया है।
सिद्धों के विलक्षण चरित्र व संबंधित लोक का महाभारत के अश्वमेघ पर्व में भी उल्लेख मिलता हैं। लोकमत के अनुसार सिद्ध पुरुष सहस्त्रों वर्ष जीवित रहते हैं और आज भी सूक्ष्म रूप में लोक विचरण करते हैं।
बाबा बालक नाथ जी का जन्म पौराणिक मुनिदेव व्यास के पुत्र शुकदेव के जन्म के समय बताया जाता है। शुकदेव मुनि का जब जन्म हुआ, उसी समय 84 सिद्धों ने विभिन्न स्थानों पर जन्म लिया। इनमें सर्वोच्च सिद्ध बाबा बालक नाथ भी एक हुए।
बाबा बालक नाथ गुरु दत्तात्रेय के शिष्य थे। ऐतिहासिक संदर्भ में नवनाथों और 84 सिद्धों का समय आठवीं से 12वीं सदी के बीच माना जाता है।
चंबा के राजा साहिल वर्मन के राज्यकाल जोकि दसवीं शताब्दीं का है, के समय 84 सिद्ध भरमौर गए थे। वे जिस स्थान पर रुके थे, वह स्थान आज भी भरमौर चौरासी के नाम से विख्यात है। नौवीं शताब्दी ही ङ्क्षहदी साहित्य में सरहपा, शहपा, लूईपा आदि कुछ सिद्ध संतों की वाणियां मिलती हैं।
बाबा बालक नाथ जी के बारे में लोकश्रुति अत्यंत प्रसिद्ध है कि उनका जन्म युगों-युगों में होता है। सतयुग में स्कंद, त्रेता में कौल, द्वापर में महाकौल और कलियुग में बाबा बालक नाथ के नाम से उनका अवतार हुआ है।
बाल योगी बाबा बालक नाथ काठियाबाड़ गुजरात में पिता नारायण विष्णो वेश और माता लक्ष्मी के घर जन्मे हैं। गिरनार पर्वत के सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल जूनागढ़ में गुरु दतात्रेय से उन्हें दीक्षा प्राप्त हुई।
उस जमाने के सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र पधारे बाबा बालक घूमते-घूमते बिलासपुर के बछरेटू में पहुंचे वहां कुछ समय रहने के बाद शाहतलाई मेे आए जहां उनकी भेंट माई रत्नो से हुई और शाहतलाई में उन्होंने वट वृक्ष के नीचे अपनी धूनी रमाई। 12 वर्ष का समय पूरा होने के बाद पौणाहारी बाबा बालक नाथ ने दियोटसिद्व में अपना धाम प्रतिष्ठित किया जहां उनकी भेंट चकमोह के गाय चराने वाले बनारसी दास से हुई।
आज यह स्थान दियोटसिद्ध नगर प्रतिष्ठित हैं। दियोटसिद्ध में चरणपादुका मंदिर भरथरी मंदिर, मठ स्थल, महंत कृपालगिर समाधि स्थल, महंत शक्ति गिरी समाधि स्थल, महंत शिव गिर समाधि स्थल, महंत रणजीत समाधि स्थल आदि अनेक दिव्य मंदिर हैं।
शाहतलाई में ही रहने वाली माई रतनो नामक महिला ने, जिसकी कोई संतान नहीं थी, इन्हें अपना धर्म का पुत्र बनाया। बाबा जी ने 12 वर्ष माई रतनो की गउएं चराई। एक दिन माता रतनो के ताना मारने पर बाबा जी ने अपने चमत्कार से 12 वर्ष की लस्सी व रोटियां एक पल में लौटा दीं।
इस घटना की जब आसपास के क्षेत्र में चर्चा हुई, तो ऋषि-मुनि व अन्य लोग बाबा जी की चमत्कारी शक्ति से बहुत प्रभावित हुए।
गुरु गोरख नाथ जी को जब से ज्ञात हुआ कि एक बालक बहुत ही चमत्कारी शक्ति वाला है, तो उन्होंने बाबा बालक नाथ जी को अपना चेला बनाना चाहा, परंतु बाबा जी के इंकार करने पर गोरखनाथ बहुत क्रोधित हुए।
जब गोरखनाथ ने उन्हें जबरदस्ती चेला बनाना चाहा, तो बाबा जी शाहतलाई से उडारी मारकर धौलगिरि पर्वत पर पहुंच गए, जहां आजकल बाबा जी की पवित्र सुंदर गुफा है।
मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही अखंड धूणा सबको आकर्षित करता है। यह धूणा बाबा बालक नाथ जी का तेज स्थल होने के कारण भक्तों की असीम श्रद्धा का केंद्र है। धूणे के पास ही बाबा जी का पुरातन चिमटा है।
बाबा जी की गुफा के सामने ही एक बहुत सुंदर गैलरी का निर्माण किया गया है, जहां से महिलाएं बाबा जी की सुंदर गुफा में प्रतिष्ठित मूर्ति के दर्शन करती हैं। सेवकजन बाबा जी की गुफा पर रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं।
बताया जाता है कि जब बाबा जी गुफा में अलोप हुए, तो यहां एक (दियोट) दीपक जलता रहता था, जिसकी रोशनी रात्रि में दूर-दूर तक जाती थी इसलिए लोग बाबा जी को दियोटसिद्ध के नाम से भी जानते हैं।
लोगों की मान्यता है कि भक्त मन में जो भी इच्छा लेकर जाएं, वह अवश्य पूरी होती है। बाबा जी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं इसलिए देश-विदेश व दूर-दूर से श्रद्धालू बाबा जी के मंदिर में अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं।
यहां एक महीने तक वार्षिक मेला लगता है। जो 14 मार्च से शुरू होकर 13 अप्रैल तक मनाया जाता है। मेलों के दौरान श्रद्धालुओं के ठहरने की पूरी व्यवस्था की जाती है।
