“मैं तो वैरागी हूँ , न सम्मान का मोह , न अपमान का भय।”
Table of Contents
मैं तो बैरागी हूँ न सम्मान का मोह न अपमान का भय ,जो मैं हूँ वो मैं नहीं हूँ ,और जो मैं नहीं हूँ वो ही मैं हूँ,मैं आदि हूँ
मैं ही अनंत हूँ, जब तक तुम जीवित हो मैं तो तुम में हूँ ,मृत्यू के पश्चात तुम मुझमें हो ,,मै शिव हूँ ,मैं ही भैरव हूँ, ब्रम्हांड से लेके एक तृण तक मैं ही मैं हूँ
मैं ही अनंत हूँ, जब तक तुम जीवित हो मैं तो तुम में हूँ ,मृत्यू के पश्चात तुम मुझमें हो ,,मै शिव हूँ ,मैं ही भैरव हूँ, ब्रम्हांड से लेके एक तृण तक मैं ही मैं हूँ
महादेव कौन है ?
महादेव वो है जो नही है और जो नही है वो महादेव है !
वो अजन्मे है ,उनका न आदि है ना अंत है,वो विद्याओ के तीरथ है, अविनाशी है, विश्वनाथ है, कालोपरि है|
पंच महाभूतों के नाथ भूतनाथ है,कैलाशपति है किन्तु सारा संसार उनका निवास्थान है |
रुद्राक्ष आभूषण, हाथ त्रिशूल, शरीर पर भसम, नेत्रों में परमानन्द और मुख पर भोलापन, सर्वयापि है वो, सभी कारणों के मुख्य कारण है|
महायोगी है वैरागी है, निराकार है वो निर्गुण है वो, गांधार है वो,चन्द्रशेखर भी वही है|
त्रिलोचन है वो और नटराज भी वही है,
कर्पूर के समान गौर वान है उनका,
नीलकंठ है|
कर्पूर के समान गौर वान है उनका,
नीलकंठ है|
सर्प उनका कंठ हार,
सुंदरता की परिभाषा है वो,और आकर्षण की पराकाष्टा, प्रकाश वो और अन्धकार भी वो ही है|
सुंदरता की परिभाषा है वो,और आकर्षण की पराकाष्टा, प्रकाश वो और अन्धकार भी वो ही है|
जीव है वो ब्रह्म है वो,
सम्पूर्ण जगत है, निरंजन है वो,
विकराल काल है वो, वो ही एक लघुपल है|
सम्पूर्ण जगत है, निरंजन है वो,
विकराल काल है वो, वो ही एक लघुपल है|
वो ही अमर है और वही प्रत्येक मृत्यु में मरते भी है,
महा पर्वत है वो और सुक्ष्म तृण भी वही है,
पृथ्वी वो है, आकाश वो है|
महा पर्वत है वो और सुक्ष्म तृण भी वही है,
पृथ्वी वो है, आकाश वो है|
बंधन वो है और मुक्ति भी वही है,
ज्ञान है और अज्ञान भी,
दुविधा है वो और निर्णय भी वही है |
ज्ञान है और अज्ञान भी,
दुविधा है वो और निर्णय भी वही है |
शांति वो है और समस्त अशांति भी वही है,
वही ब्रह्मा है वो और वही नारायण,
वही है देवो के देव महादेव..!!