माँ वैष्णो देवी की सम्पूर्ण कथा

Table of Contents

“चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है वैष्णो देवी मंदिर” भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली, उनके दुखों को हरने वाली, उनकी दिक्कतों को खत्म करने वाली, उन्हें संसार की सभी खुशियां प्रदान करने वाली ‘शेरा वाली माता’, 

‘आदिशक्ति’ वैष्णो देवी माता मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।

सुंदर वादियों में बसे इस मंदिर तक पहुंचने की यात्रा काफी कठिन है लेकिन कहते हैं ‘पहाड़ों वाली माता’ के एक बुलावे पर उसके भक्त आस्था और विश्वास की शक्ति के साथ इस यात्रा को सफल करके दिखाते हैं। 

नवरात्रों के दौरान मां वैष्णो देवी के दर्शन की विशेष मान्यता है।

इन नौ दिनों में तो जैसे इस मंदिर को एक उत्सव का रूप मिल जाता है। देश-विदेश सभी जगहों से भक्तों का जमावड़ा लग जाता है। 

माता का दरबार भी सुंदर रूप से सजाया जाता है। भक्तों में यह मान्यता बेहद प्रचलित है कि जो कोई भी सच्चे दिल से माता के दर्शन करने आता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। 

लोगों का यह भी मानना है कि जब तक माता ना चाहे कोई भी उसके दरबार में हाज़िरी नहीं भर सकता। जब उसकी इच्छा होती है वह किसी ना किसी बहाने से अपने भक्तों को अपने पास बुलाती जरूर है और भक्त भी श्रद्धाभाव से दर्शन करने जाते हैं। 

कहते हैं यहां आने वाले निर्बलों को बल, नेत्रहीनों को नेत्र, विद्याहीनों को विद्या, धनहीनों को धन और संतानहीनों को संतान का वरदान प्रदान करती है पहाड़ों वाली माता।

वैष्णो देवी को माता रानी, त्रिकुटा और वैष्णवी के नाम से भी जाना जाता है। 

वैष्णो देवी को हिन्दू धर्म में देवी माँ महालक्ष्मी का ही रूप माना जाता है। भारत में “माँ” या “माता” शब्द का उपयोग “जन्म देने वाली माँ” क लिए किया जाता है और अक्सर इसका उपयोग वैष्णो देवी के नाम से पहले भी किया जाता है। 

वैष्णो देवी का मंदिर हिन्दू देवियों को समर्पित एक मंदिर है, जो जम्मू और कश्मीर राज्य के त्रिकुटा पर्वत श्रुंखला के कतरा में स्थित है। 

शक्ति को समर्पित एक पवित्रतम हिंदू मंदिर है, जो भारत के जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी की पहाड़ी पर स्थित है। 

हिंदू धर्म में वैष्णो देवी , जो माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं, देवी मां का अवतार हैं।

वैष्णो देवी मंदिर के बारे में जानकारी

मंदिर का नामवैष्णो देवी मंदिर
मंदिर का स्थानत्रिकुटा पर्वत , कटरा , जम्मू और कश्मीर
मंदिर में देवीमाता वैष्णो देवी पिंडी रूप में विराजमान है
निकटतम रेलवे स्टेशन कटरा
निकटतम हवाई अड्डाजम्मू
मंदिर खुलने का समय24 घंटे 365 दिन
दर्शन का समय24 घंटे सिर्फ सुबह और शाम की आरती का समय छोड़कर
Detail About Vaishno Mandir Katra

वैष्णो देवी मंदिर की कथा

हिंदू महाकाव्य के अनुसार, मां वैष्णो देवी ने भारत के दक्षिण में रत्‍‌नाकर सागर के घर जन्म लिया। उनके लौकिक माता-पिता लंबे समय तक नि:संतान थे। 

दैवी बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्‍‌नाकर ने वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आएंगे. मां वैष्णो देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से बुलाया जाता था। 

बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे वैष्णवी कहलाईं। जब त्रिकुटा 9 साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र के किनारे पर तपस्या करने की अनुमति चाही। 

त्रिकुटा ने राम के रूप में भगवान विष्णु से प्रार्थना की। सीता की खोज करते समय श्री राम अपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंचे। उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी।

त्रिकुटा ने श्री राम से कहा कि उसने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया है। श्री राम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है। 

लेकिन भगवान ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे कल्कि के रूप में प्रकट होंगे और उससे विवाह करेंगे। इस बीच, श्री राम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाडि़यों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा। 

रावण के विरुद्ध श्री राम की विजय के लिए मां ने नवरात्र मनाने का निर्णय लिया। इसलिए उक्त संदर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। 

श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी। त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी।

वैष्णो देवी का मंदिर कतरा से 13.5 किलोमीटर की दुरी पर बना हुआ है और कतरा से मंदिर जाने के लिए परिवहन की सुविधा भी की गयी है। 

श्रद्धालु पालखी और इलेक्ट्रिक गाड़ी के जरिये मंदिर जा सकते है, जिसमे 2 से 4 लोग आसानी से बैठ सकते है। कटरा से संजीछत तक हेलीकाप्टर की सुविधा भी उपलब्ध करायी जाती है, जो कतरा से 9.5 किलोमीटर दूर है।

श्री माता वैष्णो देवी जी को जाने वाले तीर्थ यात्रा सबसे पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थ यात्रा हैं, जिसमे लाखो तीर्थ यात्री पैदल यात्रा करते हैं । 

वैष्णो देवी माता का मंदिर दुनियाभर में मूह मांगी मुरादे पूरी करने वाली माता के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर त्रिकुटा की पहाडियों की गुफा में बना हुआ है। 

लाखो लोग इस पवित्र गुफा के दर्शन के लिए हर साल आते है। इतना ही नहीं बल्कि हर साल यहाँ आने वाले तीर्थ यात्रियों की संख्या तो अब 1 करोड़ से भी उपर जा चुकी है। 

श्रद्धालुओ का माँ वैष्णो देवी पर अटूट विश्वास होने की वजह से यह मंदिर केवल भारत ही नही बल्कि विदेशो में भी प्रसिद्ध है।

माता वैष्णो देवी मंदिर की गुफा

वैष्णो देवी की ऊंचाई कितनी है

माता की पवित्र गुफा सतह से 5200 फीट की ऊंचाई पर बनी है।

कहा जाता है की तीर्थयात्रा करते समय माँ वैष्णो देवी का आशीर्वाद हमेशा उनके साथ बना रहता है और इसीलिए बूढ़े से बूढ़े यात्री भी इस चढ़ाई को आसानी से पार कर जाते है। 

माँ वैष्णो देवी के दर्शन तीन प्राकृतिक पत्थरों के रूप में किये जाते है। गुफा के अंदर माँ वैष्णो देवी की कोई स्थापित प्रतिमा नही है।

Mata Vaishno devi ka Pindi Roop
Mata Vaishno Devi Pindi Roop

वैष्णो देवी की चढ़ाई कितनी है

यात्रियों को कतरा के बेस कैंप से 13 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है। 

त्रिकुटा भवन माता वैष्णो देवी मंदिर का श्राइन बोर्ड

माँ वैष्णो देवी के दर्शन साल भर श्रद्धालु कर सकते है। 1986 में जब श्री माता वैष्णो देवी मंदिर बोर्ड (सामान्यतः मंदिर बोर्ड के नाम से जाना जाता है) की स्थापना की गयी तभीसे मंदिर और यात्रा के व्यवस्थापन की जिम्मेदारी बोर्ड की है। 

बोर्ड ने तबसे लेकर आज तक यात्रियों की सुविधाओ के लिए काफी काम किया और जगह-जगह यात्रियों के रुकने एवं आराम करने के लिए अब छोटे-छोटे कैंप भी लगाए गये है। 

बोर्ड लगातार यात्रियों की सुविधाओ को विकसित करने में लगा हुआ है और हर साल करोडो यात्रियों को वे जितनी सुविधा हो सके उतनी सुविधाए प्रदान करते है।

Mata Vaishno devi Bhawan
Mata Vaishno Devi Bhawan Trikuta Parvat Katra

भक्त श्रीधर की कथा Shreedhar ki Katha


माता से जुड़ी एक पौराणिक कथा काफी प्रसिद्ध है जो माता के एक भक्त श्रीधर से जुड़ी है। 

इस कथा के अनुसार वर्तमान कटरा क़स्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे, जो कि नि:संतान थे। 

संतान ना होने का दुख उन्हें पल-पल सताता था। इसलिए एक दिन नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलवाया। अपने भक्त को आशीर्वाद देने के लिए मां वैष्णो भी कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं। 

पूजन के बाद सभी कन्याएं तो चली गईं पर मां वैष्णों देवी वहीं रहीं और श्रीधर से बोलीं, “सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।“

श्रीधर पहले तो कुछ दुविधा में पड़ गए। एक गरीब इंसान इतने बड़े गांव को भोजन कैसे खिला सकता था। लेकिन कन्या के आश्वासन पर उसने आसपास के गांवों में भंडारे का संदेश पहुंचा दिया। 

साथ ही वापस आते समय बीच रास्ते में श्रीधर ने गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ को भी भोजन का निमंत्रण दे दिया।

श्रीधर के इस निमंत्रण से सभी गांव वाले अचंभित थे, वे समझ नहीं पा रहे थे कि वह कौन सी कन्या है जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? 

लेकिन निमंत्रण के अनुसार सभी एक-एक करके श्रीधर के घर में एकत्रित हुए।  तब कन्या के स्वरूप में वहां मौजूद मां वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया।

भोजन परोसते हुए जब वह कन्या बाबा भैरवनाथ के पास गई तो उसने कन्या से वैष्णव खाने की जगह मांस भक्षण और मदिरापान मांगा। लेकिन यह तो संभव नहीं था, फलस्वरूप कन्या रूपी देवी ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के यहां का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता।

किन्तु भैरवनाथ तो हठ करके बैठ गया और कहने लगा कि वह तो मांसाहार भोजन ही खाएगा। लाख मनाने के बाद भी वे ना माने। 

बाद में जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकडना चाहा, तब मां ने उसके कपट को जान लिया और तुरंत ही वे वायु रूप में बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं।

भैरवनाथ भी उनके पीछे गया। कहते हैं जब मां पहाड़ी की एक गुफा के पास पहुंचीं तो उन्होंने हनुमानजी को बुलाया और उनसे कहा कि मैं इस गुफा में नौ माह तक तप करूंगी, तब तक आप भैरवनाथ के साथ खेलें। 

आज्ञानुसार इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह खेले। आज के समय में इस पवित्र गुफा को ‘अर्धक्वाँरी’ के नाम से जाना जाता है।

कहते हैं उस दौरान हनुमानजी को प्यास लगी तब माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए। 

आज यह पवित्र जलधारा ‘बाणगंगा’ के नाम से जानी जाती है। जब भी भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं तो इस जलधारा में स्नान अवश्य करते हैं। 

जलधारा के जल को अमृत माना जाता है।

कथा के अनुसार हनुमानजी ने गुफा के बाहर भैरवनाथ से युद्ध किया लेकिन जब वे निढाल होने लगे तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। 

भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 कि. मी. दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस स्थान को भैरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है।

कहते हैं क्षमा मांगने पर माता ने भैरवनाथ को ऊंचा स्थान प्रदान किया और कहा कि ‘जो कोई भी मेरे दर्शन करने इन खूबसूरत वादियों में आएगा, वह तत्पश्चात तुम्हारे दर्शन भी जरूर करेगा अन्यथा उसकी यात्रा पूरी नहीं कहलाएगी। 

यही कारण है कि आज भी लोग माता के दर्शन के बाद बाबा भैरवनाथ के मंदिर जरूर जाते हैं।

मान्यतानुसार भैरवनाथ को मोक्ष दान देने के बाद वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं। इस बीच पंडित श्रीधर भी अधीर हो गए। 

उन्हें सपने में त्रिकुटा पर्वत दिखाई दिया और साथ ही माता की तीन पिंडियां भी, जिनकी खोज करते हुए वह पहाड़ी पर जा पहुंचे।

पिंडियां मिलने पर उन्होंने सारी ज़िंदगी विधिपूर्वक उन ‘पिंडों’ की पूजा की। उनसे प्रसन्न होकर देवी उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। 

तब से श्रीधर और उनके वंशज ही देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं। माता के इन तीन पिंडों का चमत्कारी प्रभाव भी रोचक है। 

यह आदिशक्ति के तीन रूप माने जाते हैं – पहली पिंडी मां महासरस्वती की है, जो ज्ञान की देवी हैं; दूसरी पिंडी मां महालक्ष्मी की है, जो धन-वैभव की देवी हैं और तीसरी पिंडी मां महाकाली को समर्पित है, जो शक्ति का रूप मानी जाती हैं।

इन तीन पिंडी का मनुष्य के जीवन से गहरा रिश्ता है। जीवन को सफल बनाने के लिए विद्या, धन और बल तीनों ही जरूरी होते हैं, इसलिए इन्हें हासिल करने के लिए भक्त कठोर परिश्रम कर, पहाड़ियों की यात्रा पूर्ण करता हुआ माता के दरबार में पहुंचता है। 

जो जितने उत्साह से इस यात्रा को पूरा करता है, माता का आशीर्वाद उतना ही उस पर बढ़ता चला जाता है।


यह भी जरूर पढ़े:-

माँ वैष्णो देवी मंदिर का इतिहास,Mata Vaishno Devi katha
माँ वैष्णो देवी मंदिर का इतिहास

FAQ’S

  1. वैष्णो देवी मंदिर क्या है?

    वैष्णो देवी मंदिर भारत में जम्मू और कश्मीर राज्य में त्रिकुटा पर्वत में स्थित एक हिंदू मंदिर है। यह भारत में सबसे सम्मानित और देखे जाने वाले मंदिरों में से एक है, जो हिंदू देवी वैष्णो देवी को समर्पित है।

  2. कटरा से माता वैष्णो देवी की कितनी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है?

    वैष्णो देवी मंदिर का ट्रेक लगभग 14 किमी लंबा है और इसे पूरा करने में लगभग 5-6 घंटे लगते हैं। हालाँकि, लिया गया समय व्यक्ति के फिटनेस स्तर और गति के आधार पर भिन्न हो सकता है।

  3. वैष्णो देवी के भवन तक पहुंचने के क्या क्या साधन है?

    हेलीकॉप्टर, पालकी,सीढ़िया और घोडा सवारी है

  4. वैष्णो देवी मंदिर कैसे पहुंचे ?

    वैष्णो देवी यात्रा के लिए निकटतम हवाई अड्डा जम्मू हवाई अड्डा है, जहाँ से आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या मंदिर के आधार शिविर कटरा तक पहुँचने के लिए बस ले सकते हैं। कटरा से, आप मंदिर तक पहुँचने के लिए पैदल यात्रा या हेलीकाप्टर ले सकते हैं। मंदिर तक जाने के लिए घोडा या पालकी भी उपलब्ध है।

  5. वैष्णो देवी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय क्या है?

    वैष्णो देवी यात्रा पूरा साल चलती रहती है। यहाँ जाने का कोई उपयुक्त समय नहीं है। आप कभी भी यहाँ पर जा सकते है और यहाँ तक पहुँचने के सभी साधन हमेशा उपलब्ध है। मौसम के हिसाब से वैष्णो देवी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय फ़ेरबरी से जून के अंत तक और सितंबर से दिसंबर तक है जब मौसम सुहावना होता है और ट्रेकिंग के लिए उपयुक्त होता है।

  6. क्या वैष्णो देवी मंदिर के पास कोई रहने की सुविधा उपलब्ध है?

    हां, वैष्णो देवी मंदिर के पास ठहरने के कई विकल्प उपलब्ध हैं, जिनमें बजट से लेकर लक्ज़री क्लास की है, रहने के लिए डॉरमॅटरी और प्राइवेट कमरे भी मिल जाते है पर इसकी बुकिंग आपको एडवांस में करवानी पड़ती है। आप माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड पर जाकर कमरे या डोरमेंट्री की बुकिंग एडवांस में कर सकते है।

  7. वैष्णो देवी मंदिर के समय क्या हैं?

    वैष्णो देवी मंदिर 24 घंटे खुला रहता है, लेकिन आरती और पूजा का समय मौसम और त्योहार के आधार पर भिन्न हो सकता है। सुबह और शाम की पूजा के लिए दर्शन को रोक दिया जाता है।

  8. क्या वैष्णो देवी मंदिर में प्रवेश के लिए कोई ड्रेस कोड है?

    जी नहीं, वैष्णो देवी मंदिर में प्रवेश के लिए कोई ड्रेस कोड नहीं है। पुरुषों को , पेण्ट कमीज, धोती-कुर्ता, प्याज़मा कुर्ता पहनना चाहिए, जबकि महिलाओं को साड़ी या सलवार-कमीज पहननी चाहिए। आप सुविधा अनुसार और धार्मिक स्थल की मर्यादा के अनुसार कोई डंग के कपडे पहनकर दर्शन कर सकते है। मंदिर परिसर के अंदर चमड़े की वस्तुएं पहनना वर्जित है।

  9. क्या वैष्णो देवी मंदिर में कोई चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है?

    हां, वैष्णो देवी मंदिर में अस्पताल, डिस्पेंसरी और प्राथमिक चिकित्सा केंद्र सहित चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं।

Conclusion

अंत में, कटरा में वैष्णो देवी मंदिर हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है और हर साल बड़ी संख्या में देश विदेश में श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। वैष्णो देवी मंदिर ( वैष्णो देवी भवन ) त्रिकुटा पर्वत में स्थित है और यहां पैदल, घोड़े, पालकी या हेलीकाप्टर द्वारा पहुंचा जा सकता है। मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय मार्च से जुलाई और सितंबर से दिसंबर तक है।

माता के भक्त मंदिर के पास विभिन्न आवास विकल्पों में रह सकते हैं और आपात स्थिति में चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं। माता के भक्तों से विनम्र निवेदन है की मंदिर जाते समय ड्रेस कोड और नियमों का पालन का पालन जरुरी करें। जय माता दी। उम्मीद है आपको ऊपर दी हुई हुई जानकारी पसंद आयी होगी।


Leave a comment