पार्वती मंगल पाठ

पार्वती मंगल पाठ तुलसीदास जी द्वारा रचा गया है | Parvati Mangal Path में भगवान शंकर एवं पार्वती के विवाह का चित्रण किया गया है।

पार्वती जी ने भगवान शंकर जो समाधि में लीन रहना पसंद था, वैराग्य जीवन जिनको पसंद था , ऐसे भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिये कठोर तप किया ,उनकी आराधना की, सब प्रकार से दुखों को सहते हुए शिव को अपने प्रियतम के रूप में पाने पर अडिग रही, किस प्रकार उनके आराध्य देव ने उनके प्रेम की परीक्षा ली और अंत में कैसे उनकी अदम्य निष्ठा की जीत हुई इसका हृदयग्राही तथ मनोरम वर्णन पार्वती मंगल पाठ में है।

शिव बरात का वर्णन तुलसीदास जी ने हास्यरस के मधुर पुट के साथ विवाह एवं विदाई का मार्मिक एवं रोचक वर्णन किया है |

  

Parvati Mangal Stotra

बिनइ गुरहि गुनिगनहि गिरिहि गननाथहि ।

ह्रदयँ आनि सिय राम धरे धनु भाथहि ।।1।। 

गावउँ गौरि गिरीस बिबाह सुहावन ।

पाप नसावन पावन मुनि मन भावन ।।2।।

 

कबित रीति नहिं जानउँ कबि न कहावउँ ।

संकर चरित सुसरित मनहि अन्हवावउँ ।।3।।

 

पर अपबाद-बिबाद-बिदूषित बानिहि ।

पावन करौं सो गाइ भवेस भवानिहि ।।4।।

 

जय संबत फागुन सुदि पाँचै गुरु छिनु ।

अस्विनि बिरचेउँ मंगल सुनि सुख छिनु छिनु ।।5।।

 

गुन निधानु हिमवानु धरनिधर धुर धनि ।

मैना तासु घरनि घर त्रिभुवन तियमनि ।।6।।

 

कहहु सुकृत केहि भाँति सराहिय तिन्ह कर ।

लीन्ह जाइ जग जननि जनमु जिन्ह के घर ।।7।।

 

मंगल खानि भवानि प्रगट जब ते भइ ।

तब ते रिधि-सिधि संपति गिरि गृह नित नइ ।।8।।

 

नित नव सकल कल्यान मंगल मोदमय मुनि मानहिं ।

ब्रह्मादि सुर नर नाग अति अनुराग भाग बखानहीं ।।

 

पितु मातु प्रिय परिवारु हरषहिं निरखि पालहिं लालहिं ।

सित पाख बाढ़ति चंद्रिका जनु चंदभूषन भालहिं ।।1।।

 

कुँअरि सयानि बिलोकि मातु-पितु सोचहिं ।

गिरिजा जोगु जुरिहि बरु अनुदिन लोचहिं ।।9।।

 

एक समय हिमवान भवन नारद गए ।

गिरिबरु मैना मुदित मुनिहि पूजत भए ।।10।।

 

उमहि बोलि रिषि पगन मातु मेलत भई ।

मुनि मन कीन्ह प्रणाम बचन आसिष दई ।।11।।

 

कुँअरि लागि पितु काँध ठाढ़ि भइ सोहई ।

रूप न जाइ बखानि जानु जोइ जोहई ।।12।।

 

अति सनेहँ सतिभायँ पाय परि पुनि पुनि ।

कह मैना मृदु बचन सुनिअ बिनती मुनि ।।13।।

 

तुम त्रिभुवन तिहुँ काल बिचार बिसारद ।

पार्वती अनुरूप कहिय बरु नारद ।।14।।

 

मुनि कह चौदह भुवन फिरउँ जग जहँ जहँ ।

गिरिबर सुनिय सरहना राउरि तहँ तहँ ।।15।।

 

भूरि भाग तुम सरिस कतहुँ कोउ नाहिन ।

कछु न अगम सब सुगम भयो बिधि दाहिन ।।16।।

 

दाहिन भए बिधि सुगम सब सुनि तजहु चित चिंता नई ।

बरु प्रथम बिरवा बिरचि बिरच्यो मंगला मंगलमई ।।

 

बिधिलोक चरचा चलति राउरि चतुर चतुरानन कही ।

हिमवानु कन्या जोगु बरु बाउर बिबुध बंदित सही ।।2।।

 

मोरेहुँ मन अस आव मिलिहि बरु बाउर ।

लखि नारद नारदी उमहि सुख भा उर ।।17।।

 

सुनि सहमे परि पाइ कहत भए दंपति ।

गिरिजहि लगे हमार जिवनु सुख संपति ।।18।।

 

नाथ कहिय सोइ जतन मिटइ जेहिं दूषनु ।

दोष दलन मुनि कहेउ बाल बिधु भूषनु ।।12।।

 

अवसि होइ सिधि साहस फलै सुसाधन ।

कोटि कलप तरु सरिस संभु अवराधन ।।20।।

 

तुम्हरें आश्रम अबहिं ईसु तप साधहिं ।

कहिअ उमहि मनु लाइ जाइ अवराधहिं ।।21।।

 

कहि उपाय दंपतिहि मुदित मुनिबर गए ।

अति सनेहँ पितु मातु उमहि सिखवत भए ।।22।।

 

सजि समाज गिरिराज दीन्ह सबु गिरिजहि ।

बदति जननि जगदीस जुबति जनि सिरजहि ।।23।।

 

जननि जनक उपदेस महेसहि सेवहि ।

अति आदर अनुराग भगति मनु भेवहि ।।24।।

 

भेवहि भगति मन बचन करम अनन्य गति हर चरन की ।

गौरव सनेह सकोच सेवा जाइ केहि बिधि बरन की ।।

 

गुन रूप जोबन सींव सुंदरि निरखि छोभ न हर हिएँ ।

ते धीर अछत बिकार हेतु जे रहत मनसिज बस किएँ ।।3।।

 

देव देखि भल समय मनोज बुलायउ ।

कहेउ करिअ सुर काजु साजु सजि आयउ ।।25।।

 

बामदेउ सन कामु बाम होइ बरतेउ ।

जग जय मद निदरेसि फरु पायसि फर तेउ ।।26।।

 

रति पति हीन मलीन बिलोकि बिसूरति ।

नीलकंठ मृदु सील कृपामय मूरति ।।27।।

 

आसुतोष परितोष कीन्ह बर दीन्हेउ ।

सिव उदास तजि बास अनत गम कीन्हेउ ।।28।। 

दोहा 

अब ते रति तव नाथ कर होइहि नाम अनंगु |

बिनु बपू ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु ||

 

जब जदुबंस कृष्ण अवतारा | होइहि हरण महा माहि भारा ||

कृष्न तनय होइहि पति तोरा | बचनु अन्यथा होइ ना मोरा ||

 

उमा नेह बस बिकल देह सुधि बुधि गई ।

कलप बेलि बन बढ़त बिषम हिम जनु दई ।।29।।

 

समाचार सब सखिन्ह जाइ घर घर कहे ।

सुनत मातु पितु परिजन दारुन दुख दहे ।।30।।

 

जाइ देखि अति प्रेम उमहि उर लावहिं ।

बिलपहिं बाम बिधातहि दोष लगावहिं ।।31।।

 

जौ न होहिं मंगल मग सुर बिधि बाधक ।

तौ अभिमत फल पावहिं करि श्रमु साधक ।।32।।

 

साधक कलेस सुनाइ सब गौरिहि निहोरत धाम को ।

को सुनइ काहि सोहाय घर चित चहत चंद्र ललामको ।।

 

समुझाइ सबहि दृढ़ाइ मनु पितु मातु, आयसु पाइ कै ।

लागी करन पुनि अगमु तपु तुलसी कहै किमि गाइकै ।।4।।

 

फिरेउ मातु पितु परिजन लखि गिरिजा पन ।

जेहिं अनुरागु लागु चितु सोइ हितु आपन ।।33।।

 

तजेउ भोग जिमि रोग लोग अहि गन जनु ।

मुनि मनसहु ते अगम तपहिं लायो मनु ।।34।।

 

सकुचहिं बसन बिभूषन परसत जो बपु ।

तेहिं सरीर हर हेतु अरंभेउ बड़ तपु ।।35।।

 

पूजइ सिवहि समय तिहुँ करइ निमज्जन ।

देखि प्रेमु ब्रतु नेमु सराहहिं सज्जन ।।36।।

 

नीद न भूख पियास सरिस निसि बासरु ।

नयन नीरु मुख नाम पुलक तनु हियँ हरु ।।37।।

 

कंद मूल फल असन, कबहुँ जल पवनहि ।

सूखे बेल के पात खात दिन गवनहि ।38।।

 

नाम अपरना भयउ परन जब परिहरे ।

नवल धवल कल कीरति सकल भुवन भरे ।।39।।

 

देखि सराहहिं गिरिजहि मुनिबरु मुनि बहु ।

अस तप सुना न दीख कबहुँ काहुँ कहु ।।40।।

 

काहूँ न देख्यौ कहहिं यह तपु जोग फल फल चारि का ।

नहिं जानि जाइ न कहति चाहति काहि कुधर-कुमारिका ।।

 

बटु बेष पेखन पेम पनु ब्रत नेम ससि सेखर गए ।

मनसहिं समरपेउ आपु गिरिजहि बचन मृ्दु बोलत भए ।।5।।

 

देखि दसा करुनाकर हर दुख पायउ ।

मोर कठोर सुभाय ह्रदयँ अस आयउ ।।41।।

 

बंस प्रसंसि मातु पितु कहि सब लायक ।

अमिय बचनु बटु बोलेउ अति सुख दायक ।।42।।

 

देबि करौं कछु बिनती बिलगु न मानब ।

कहउँ सनेहँ सुभाय साँच जियँ जानब ।।43।।

 

जननि जगत जस प्रगटेहु मातु पिता कर ।

तीय रतन तुम उपजिहु भव रतनाकर ।।44।।

 

अगम न कछु जग तुम कहँ मोहि अस सूझइ ।

बिनु कामना कलेस कलेस न बूझइ ।।45।।

 

जौ बर लागि करहु तप तौ लरिकाइअ ।

पारस जौ घर मिलै तौ मेरु कि जाइअ ।।46।।

 

मोरें जान कलेस करिअ बिनु काजहि ।

सुधा कि रोगिहि चाहइ रतन की राजहि ।।47।।

 

लखि न परेउ तप कारन बटु हियँ हारेउ ।

सुनि प्रिय बचन सखी मुख गौरि निहारेउ ।।48।।

 

गौरीं निहारेउ सखी मुख रुख पाइ तेहिं कारन कहा ।

तपु करहिं हर हितु सुनि बिहँसि बटु कहत मुरुखाई महा ।।

 

जेहिं दीन्ह अस उपदेस बरेदु कलेस करि बरु बावरो ।

हित लागि कहौं सुभायँ सो बड़ बिषम बैरी रावरो ।।6।।

 

कहहु काह सुनि रीझिहु बर अकुलीनहिं ।

अगुन अमान अजाति मातु पितु हीनहिं ।।49।।

 

भीख मागि भव खाहिं चिता नित सोवहिं ।

नाचहिं नगन पिसाच पिसाचिनि जोवहिं ।।50।।

 

भाँग धतूर अहार छार लपटावहिं ।

जोगी जटिल सरोष भोग नहिं भावहिं ।।51।।

 

सुमुखि सुलोचनि हर मुख पंच तिलोचन ।

बामदेव फुर नाम काम मद मोचन ।।52।।

 

एकउ हरहिं न बर गुन कोटिक दूषन ।

नर कपाल गज खाल ब्याल बिष भूषन ।।53।।

 

कहँ राउर गुन सील सरूप सुहावन ।

कहाँ अमंगल बेषु बिसेषु भयावन ।।54।।

 

जो सोचइ ससि कलहि सो सोचइ रौरेहि ।

कहा मोर मन धरि न बिरय बर बौरेहि ।।55।।

 

हिए हेरि हठ तजहु हठै दुख पैहहु ।

ब्याह समय सिख मोरि समुझि पछितैहहु ।।56।।

 

पछिताब भूत पिसाच प्रेत जनेत ऎहैं साजि कै ।

जम धार सरिस निहारि सब नर्-नारि चलिहहिं भाजि कै ।।

 

गज अजिन दिब्य दुकूल जोरत सखी हँसि मुख मोरि कै ।

कोउ प्रगट कोउ हियँ कहिहि मिलवत अमिय माहुर घोरि कै ।।7।।

 

तुमहि सहित असवार बसहँ जब होइहहिं ।

निरखि नगर नर नारि बिहँसि मुख गोइहहिं ।।57।।

 

बटु करि कोटि कुतरक जथा रुचि बोलइ ।।

अचल सुता मनु अचल बयारि कि डोलइ ।।58।।

 

साँच सनेह साँच रुचि जो हठि फेरइ ।

सावन सरिस सिंधु रुख सूप सो घेरइ ।।59।।

 

मनि बिनु फनि जल हीन मीन तनु त्यागइ ।

सो कि दोष गुन गनइ जो जेहि अनुरागइ ।।60।।

 

करन कटुक चटु बचन बिसिष सम हिय हए ।

अरुन नयन चढ़ि भृकुटि अधर फरकत भए ।।61।।

 

बोली फिर लखि सखिहि काँपु तन थर थर ।

आलि बिदा करु बटुहि बेगि बड़ बरबर ।।62।।

 

कहुँ तिय होहिं सयानि सुनहिं सिख राउरि ।

बौरेहि कैं अनुराग भइउँ बड़ि बाउरि ।।63।।

 

दोष निधान इसानु सत्य सबु भाषेउ ।

मेटि को सकइ सो आँकु जो बिधि लिखि राखेउ ।।64।।

 

को करि बादु बिबादु बिषादु बढ़ावइ ।

मीठ काहि कबि कहहिं जाहि जोइ भावइ ।।65।।

 

भइ बड़ि बार आलि कहुँ काज सिधारहिं ।

बकि जनि उठहिं बहोरि कुजुगति सवाँरहिं ।।66।।

 

जनि कहहिं कछु बिपरीत जानत प्रीति रीति न बात की ।

सिव साधु निंदकु मंद अति जोउ सुनै सोउ बड़ पातकी ।।

 

सुनि बचन सोधि सनेहु तुलसी साँच अबिचल पावनो ।

भए प्रगट करुनासिंधु संकरु भाल चंद सुहावनो ।।8।।

 

सुंदर गौर सरीर भूति भलि सोहइ ।

लोचन भाल बिसाल बदनु मन मोहइ ।।67।।

 

सैल कुमारि निहारि मनोहर मूरति ।

सजल नयन हियँ हरषु पुलक तन पूरति ।।68।।

 

पुनि पुनि करै प्रनामु न आवत कछु कहि ।

देखौं सपन कि सौतुख ससि सेखर सहि ।।69।।

 

जैसें जनम दरिद्र महामनि पावइ ।

पेखत प्रगट प्रभाउ प्रतीति न आवइ ।।70।।

 

सुफल मनोरथ भयउ गौरि सोहइ सुठि ।

घर ते खेलन मनहुँ अबहिं आई उठि ।।71।।

 

देखि रूप अनुराग महेस भए बस ।

कहत बचन जनु सानि सनेह सुधा रस ।।72।।

 

हमहि आजु लगि कनउड़ काहुँ न कीन्हेउँ ।

पारबती तप प्रेम मोल मोहि लीन्हेउँ ।।73।।

 

अब जो कहहु सो करउँ बिलंबु न एहिं घरी ।

सुनि महेस मृदु बचन पुलकि पायन्ह परी ।।74।।

 

परि पायँ सखि मुख कहि जनायो आपु बाप अधीनता

परितोषि  गरिजहि चले बरनत प्रीति नीति प्रबीनता ।।

 

हर हृदयँ धरि घर गौरि गवनी कीन्ह बिधि मन भावनो ।

आनंदु प्रेम समाजु मंगल गान बाजु बधावनो ।।9।।

 

सिव सुमिरे मुनि सात आइ सिर नाइन्हि ।

कीन्ह संभु सनमानु जन्म फल पाइन्हि ।।76।।

 

सुमिरहिं सकृत तुम्हहि जन तेइ सुकृति बर ।

नाथ जिन्हहि सुधि करिअ तिनहिं सम तेइ हर ।।76।।

 

सुनि मुनि बिनय महेस परम सुख पायउ ।

कथा प्रसंग मुनीसन्ह सकल सुनायउ ।।77।।

 

जाहु हिमाचल गेह प्रसंग चलायहु ।

जौं मन मान तुम्हार तौ लगन धरायहु ।।78।।

 

अरुंधती मिलि मनहिं बात चलाइहि ।

नारि कुसल इहिं काजु बनि आइहि ।।79।।

 

दुलहिनि उमा ईसु बरु साधक ए मुनि ।

बनिहि अवसि यहु काजु गगन भइ अस धुनि ।।80।।

 

भयउ अकनि आनंद महेस मुनीसन्ह ।

देहिं सुलोचनि सगुन कलस लिएँ सीसन्ह ।।81।।

 

सिव सो कहेउ दिन ठाउँ बहोरि मिलनु जहँ ।

चले मुदित मुनिराज गए गिरिबर पहँ ।।82।।

 

गिरि गेह गे अति नेहँ आदर पूजि पहुँनाई करी ।

घरवात घरनि समेत कन्या आनि सब आगें धरी ।।

 

सुखु पाइ बात चलाइ सुदिन सोधाइ गिरिहि सिखाइ कै ।

रिषि सात प्रातहिं चले प्रमुदित ललित लगन लिखाइ कै ।।10।।

 

बिप्र बृंद सनमानि पूजि कुल गुर सुर ।

परेउ निसानहिं घाउ चाउ चहुँ दिसि पुर ।।83।।

 

गिरि बन सरित सिंधु सर सुनइ जो पायउ ।

सब कहँ गिरिबर नायक नेवत पठायउ ।।84।।

 

धरि धरि सुंदर बेष चले हरषित हिएँ ।

चवँर चीर उपहार हार मनि गन लिएँ ।।85।।

 

कहेउ हरषि हिमवान बितान बनावन ।

हरषित लगीं सुआसिनि मंगल गावन ।।86।।

 

तोरन कलस चँवर धुज बिबिध बनाइन्हि ।

हाट पटोरन्हि छाय सफल तरु लाइन्हि ।।87।।

 

गौरी नैहर केहि बिधि कहहु बखानिय ।

जनु रितुराज मनोज राज रजधानिय ।।88।।

 

जनु राजधानी मदन की बिरची चतुर बिधि और हीं ।

रचना बिचित्र बिलोकि लोचन बिथकि ठौरहिं ठौर हीं ।।

 

एहि भाँति ब्याह समाज सजि गिरिराजु मगु जोवन लगे ।

तुलसी लगन लै दीन्ह मुनिन्ह महेस आनँद रँग मगे ।।11।।

 

बेगि बोलाइ बिरंचि बचाइ लगन जब ।

कहेन्हि बिआहन चलहु बुलाइ अमर सब ।।89।।

 

बिधि पठए जहँ तहँ सब सिव गन धावन ।

सुनि हरषहिं सुर कहहिं निसान बजावन ।।90।।

 

रचहिं बिमान बनाइ सगुन पावहिं भले ।

निज निज साजु समाजु साजि सुरगन चले ।।91।।

 

मुदित सकल सिव दूत भूत गन गाजहिं ।

सूकर महिष स्वान खर बाहन साजहिं ।।92।।

 

नाचहिं नाना रंग तरंग बढ़ावहिं ।

अज उलूक बृक नाद गीत गन गावहिं ।।93।।

 

रमानाथ सुरनाथ साथ सब सुर गन ।

आए जहँ बिधि संभु देखि हरषे मन ।।94।।

 

Parvati Mangal Path
Parvati mangal Paath

मिले हरिहिं हरु हरषि सुभाषि सुरेसहि ।

सुर निहारि सनमानेउ मोद महेसहि ।।95।।

 

बहु बिधि बाहन जान बिमान बिराजहिं ।

चली बरात निसान गहागह बाजहिं ।।96।।

 

बाजहिं निसान सुगान नभ चढ़ि बसह बिधुभूषन चले ।

बरषहिं सुमन जय जय करहिं सुर सगुन सुभ मंगल भले ।।

 

तुलसी बराती भूत प्रेत पिसाच पसुपति सँग लसे ।

गज छाल ब्याल कपाल माल बिलोकि बर सुर हरि हँसे ।।12।।

 

बिबुध बोलि हरि कहेउ निकट पुर आयउ ।

आपन आपन साज सबहिं बिलगायउ ।।97।।

 

प्रमथनाथ के साथ प्रमथ गन राजहिं ।

बिबिध भाँति मुख बाहन बेष बिराजहिं ।।98।।

 

कमठ खपर मढि खाल निसान बजावहिं ।

नर कपाल जल भरि-भरि पिअहिं पिआवहिं ।।99।।

 

बर अनुहरत बरात बनी हरि हँसि कहा ।

सुनि हियँ हँसत महेस केलि कौतुक महा ।।100।।

 

बड़ बिनोद मग मोद न कछु कहि आवत ।

जाइ नगर नियरानि बरात बजावत ।।101।।

 

पुर खरभर उर हरषेउ अचल अखंडलु ।

परब उदधि उमगेउ जनु लखि बिधु मंडलु ।।102।।

 

प्रमुदित गे अगवान बिलोकि बरातहि ।

भभरे बनइ न रहत न बनइ परातहि ।।103।।

 

चले भाजि गज बाजि फिरहिं नहिं फेरत ।

बालक भभरि भुलान फिरहिं घर हेरत ।।104।।

 

दीन्ह जाइ जनवास सुपास किए सब ।

घर घर बालक बात कहन लागे तब ।।105।।

 

प्रेत बेताल बराती भूत भयानक ।

बरद चढ़ा बर बाउर सबइ सुबानक ।।106।।

 

कुसल करइ करतार कहहिं हम साँचिअ ।

देखब कोटि बिआह जिअत जौं बाँचिअ ।।107।।

 

समाचार सुनि सोचु भयउ मन मयनहिं ।

नारद के उपदेस कवन घर गे नहिं ।।108।।

 

घर घाल चालक कलह प्रिय कहियत परम परमारथी ।

तैसी बरेखी कीन्हि पुनि मुनि सात स्वारथ सारथी ।।

 

उर लाइ उमहि अनेक बिधि जलपति जननि दुख मानई ।

हिमवान कहेउ इसान महिमा अगम निगम न जानई ।।13।।

 

सुनि मैना भइ सुमन सखी देखन चली ।

जहँ तहँ चरचा चलइ हाट चौहट गली ।।109।।

 

श्रीपति सुरपति बिबुध बात सब सुनि सुनि ।

हँसहि कमल कर जोरि मोरि मुख पुनि पुनि ।।110।।

 

लखि लौकिक गति संभु जानि बड़ सोहर ।

भए सुंदर सत कोटि मनोज मनोहर ।।111।।

 

नील निचोल छाल भइ फनि मनि भूषन ।

रोम रोम पर उदित रूपमय पूषन ।।112।।

 

गन भए मंगल बेष मदन मन मोहन ।

सुनत चले हियँ हरषि नारि नर जोहन ।।113।।

 

संभु सरद राकेस नखत गन सुर गन ।

जनु चकोर चहुँ ओर बिराजहिं पुर जन ।।114।।

 

गिरबर पठए बोलि लगन बेरा भई ।

मंगल अरघ पाँवड़े देत चले लई ।।115।।

 

होहिं सुमंगल सगुन सुमन बरषहिं सुर ।

गहगहे गान निसान मोद मंगल पुर ।।116।।

 

पहिलिहिं पवरि सुसामध भा सुख दायक ।

इति बिधि उत हिमवान सरिस सब लायक ।।117।।

 

मनि चामीकर चारु थार सजि आरति ।

रति सिहाहिं लखि रूप गान सुनि भारति ।।118।।

 

भरी भाग अनुराग पुलकि तन मुद मन ।

मदन मत्त गजगवनि चलीं बर परिछन ।।119।।

 

बर बिलोकि बिधु गौर सुअंग उजागर ।

करति आरती सासु मगन सुख सागर ।।120।। 

 

सुख सिंधु मगन उतारि आरति करि निछावर निरखि कै ।

मगु अरघ बसन प्रसून भरि लेइ चलीं मंडप हरषि कै ।।

 

हिमवान दीन्हें उचित आसन सकल सुर सनमानि कै ।।

तेहि समय साज समाज सब राखे सुमंडप आनि कै ।।14।।

 

अरघ देइ मनि आसन बर बैठायउ ।

पूजि कीन्ह मधुपर्क अमी अचवायउ ।।121।।

 

सप्त रिषिन्ह बिधि कहेउ बिलंब न लाइअ ।

लगन बेर भइ बेगि बिधान बनाइअ ।।122।

 

थापि अनल हर बरहि बसन पहिरायउ ।

आनहु दुलहिनि बेगि समय अब आयउ ।।123।।

 

सखी सुआसिनि संग गौरि सुठि सोहति ।

प्रगट रूपमय मूरति जनु जग मोहति ।।124।।

 

भूषन बसन समय सम सोभा सो भली ।

सुषमा बेलि नवल जनु रूप फलनि फली ।।125।।

 

कहहु काहि पटतरिय गौरि गुन रूपहि ।

सिंधु कहिय केहि भाँति सरिस सर कूपहि ।।126।।

 

आवत उमहि बिलोकि सीस सुर नावहिं ।

भव कृतारथ जनम जानि सुख पावहिं ।।127।।

 

बिप्र बेद धुनि करहिं सुभासिष कहि कहि ।

गान निसान सुमन झरि अवसर लहि लहि ।।128।।

 

बर दुलहिनिहि बिलोकि सकल मन हरसहिं ।

साखोच्चार समय सब सुर मुनि बिहसहिं ।।129।।

 

लोक बेद बिधि कीन्ह लीन्ह जल कुस कर ।

कन्या दान सँकलप कीन्ह धरनीधर ।।130।।

 

पूजे कुल गुर देव कलसु सिल सुभ घरी ।

लावा होम बिधान बहुरि भाँवरि परी ।।131।।

 

बंदन बंदि ग्रंथि बिधि करि धुव देखेउ ।

भा बिबाह सब कहहिं जनम फल पेखेउ ।।132।।

 

पेखेउ जनम फलु भा बिबाह उछाह उमगहि दस दिसा ।

नीसान गान प्रसूत झरि तुलसी सुहावनि सो निसा ।।

 

दाइज बसन मनि धेनु धन हय गय सुसेवक सेवकी ।

दीन्हीं मुदित गिरिराज जे गिरिजहि पिआरि पेव की ।।15।।

 

बहुरि बराती मुदित चले जनवासहि ।

दूलह दुलहिन गे तब हास-अवासहि ।।133।।

 

रोकि द्वार मैना तब कौतुक कीन्हेउ ।

करि लहकौरि गौरि हर बड़ सुख दीन्हेउ ।।134।।

 

जुआ खेलावत गारि देहिं गिरि नारिहि ।

आपनि ओर निहारि प्रमोद पुरारिहि ।।135।।

 

सखी सुआसिनि सासु पाउ सुख सब बिधि ।

जनवासेहि बर चलेउ सकल मंगल निधि ।।136।।

 

भइ जेवनार बहोरि बुलाइ सकल सुर ।

बैठाए गिरिराज धरम धरनि धुर ।।137।।

 

परुसन लगे सुआर बिबुध जन जेवहिं ।

देहिं गारि बर नारि मोद मन भेवहिं ।।138।।

 

करहिं सुमंगल गान सुघर सहनाइन्ह ।

जेइँ चले हरि दुहिन सहित सुर भाइन्ह ।।139।।

 

भूधर भोरु बिदा कर साज सजायउ ।

चले देव सजि जान निसान बजायउ ।।140।।

 

सनमाने सुर सकल दीन्ह पहिरावनि ।

कीन्ह बड़ाई बिनय सनेह सुहावनि ।।141।।

 

गहि सिव पद कह सासु बिनय मृदु मानबि ।

गौरि सजीवन मूरि मोरि जियँ जानबि ।

 

भेंटि बिदा करि बहुरि भेंटि पहुँचावहि ।

हुँकरि हुँकरि सु लवाइ धेनु जनु धावहिं ।।143।।

 

उमा मातु मुख निरखि नैन जल मोचहिं ।

नारि जनमु जग जाय सखी कहि सोचहिं ।।144।।

 

भेंटहि उमहि गिरिराज सहित सुत परिजन ।

बहुत भाँति समुझाइ फिरे बिलखित मन ।।145।।

 

संकर गौरि समेत गए कैलासहि ।

नाइ नाइ सिर देव चले निज बासहि ।।146।।

 

उमा महेस बिआह उछाह भुवन भरे ।

सब के सकल मनोरथ बिधि पूरन करे ।।147।।

 

प्रेम पाट पटडोरि गौरि हर गुन मनि ।

मंगल हार रचेउ कबि मति मृगलोचनि ।।148।।

 

मृगनयनि बिधुबदनी रचेउ मनि मंजु मंगलहार सो ।

उर धरहुँ जुबती जन बिलोकि तिलोक सोभा सार सो ।।

 

कल्यान काज उछाह ब्याह सनेह सहित जो गाइहै ।

तुलसी उमा संकर प्रसाद प्रमोद मन प्रिय पाइहै ।।149।।


Parvati Mangal Path Ke Fayde

पार्वती मंगल पाठ करने से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं | विवाह में आ रही बाधाओं का दोष दूर होता है और मनचाहा वर प्राप्त होता है.

माता पार्वती दुर्गा देवी का ही रूप है। माता पार्वती की पूजा करने से दांपत्य जीवन में सुख मिलता है। घर में सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है। श्रावण मास में पार्वती जी का व्रत करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और पारिवारिक जीवन सुखद और मंगलमय होता है। पार्वती मंगल पाठ करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।

  • पार्वती मंगल पाठ अत्यंत सौभाग्य दायक है। पार्वती मंगल पाठ करने के लिए सुबह स्नान आदि से निवृत होकर लाल वस्त्र धारण करें।
  • घर के मंदिर में या किसी साफ़ सुथरे स्थान पर लाल कपड़ा बिछाकर माता पार्वती की तस्वीर या मूर्ति रखें।
  • ताम्बे का एक कलश में पानी भर लें
  • देसी घी का दिया जलाएं और धुप जलाएं
  • पार्वती माता को सिन्दूर से तिलक लगाएं और उसके बाद अपने माथे पर भी तिलक करें |
  • माता पारवती को लाल बस्त्र या चुनरी चढ़ाएं
  • शृंगार का सामान जैसे- सिंदूर, मेहंदी, बिंदी,चूड़ियां, काजल,चुनरी आदि पार्वती माता को चढ़ाएं।
  • माता पार्वती जी का शृंगार करें । पार्वती माता सौभाग्य दायिनी है, इसलिए इनकी पूजा सौभाग्य में वृद्धि करती है।
  • पार्वती माता को लाल गुलाब के फूल और फल अर्पित करें।
  • पार्वती मंगल पाठ करते समय लाल आसन पर बैठें और पूरी श्रद्धा से पार्वती मंगल पाठ का जाप करें , आप जिस भी मनोकामना को लेकर इस पाठ का जाप कर रहें है वो सब पुराण होता हुआ या प्राप्त हुआ दिखेगा 

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FAQs


  1. पार्वती मंगल के रचनाकार कौन है?

    तुलसीदास जी

  2. पार्वती मंगल की रचना कब हुई?

    जय नामक संवत के फाल्गुन मास की शुक्ला पंचमी बृहस्पतिवार को अश्विनी नक्षत्र में हुई

  3. पार्वती जी के कितने अवतार है?

    माता पार्वती जी के 9 अवतार है

  4. पार्वती मंगल पाठ किन लोगों को करना चाहिए?

    लड़कियों को मनचाहा वर पाने के लिए पार्वती मंगल पाठ करना चाहिए।

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