शिर्डी के साईं बाबा का इतिहास
वैश्विक स्तर पर भी लोग साईं बाबा को जानते है। नश्वर चीजो का उन्हें कोई मोह नही था और उनका मुख्य उद्देश्य स्वयं को खुद की अनुभूति दिलाना था। वे लोगो को प्यार, दया, मदद, समाज कल्याण, संतोष, आंतरिक शांति और भगवन की भक्ति और गुरु का पाठ पढ़ाते थे।
उन्होंने लोगो को धार्मिक भेदभाव करने से भी मना किया था। साईबाबा लोगो को हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्म का पाठ पढ़ाते थे, उन्होंने उनके रहने वाली मस्जिद को हिन्दू नाम द्वारकामाई का नाम भी दिया था, जिसमे हिन्दू और मुस्लिम दोनों एकसाथ साईबाबा को पूजते थे। साईबाबा की एक प्रसिद्ध सुभाषित
जो हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मो से जुडी हुई है, इसके साथ ही वे यह भी कहते थे की, “मुझे और और तुम्हे तुम्हारी प्रार्थना का जवाब मिल जाएंगा।” इसका साथ-साथ वे हमेशा “अल्लाहमालिक” बोल का भी उपयोग करते थे।
साईं बाबा का असल नाम और जन्मनाम आज तक किसी को पता नही है। कुछ लोगो का ऐसा मानना है की उनका जन्म 28 सितम्बर 1835 में हुआ था, लेकिन इससे संबंधित को पर्याप्त दस्तावेज नही है। अक्सर जब उनसे उनके भूतकाल के बारे में पूछा जाता था तब हमेशा वे दुर्ग्राह्य जवाब देते थे।
“साईं” नाम उन्हें उनके शिर्डी आने पर दिया गया था, शिर्डी महाराष्ट्र के पश्चिम का एक गाँव है। साईं शब्द धार्मिक भिक्षुको से जुड़ा हुआ है। बहुत सी भारतीय और मध्य पूर्व भाषाओ में “बाबा” शब्द साधारणतः बड़े पापा, पापा और किसी वृद्ध पुरुष के संबोधन में बोला जाता था।
इसीलिए साईं बाबा को लोग एक पवित्र और धार्मिक पिता मानते थे। साईं बाबा के कुछ अनुयायी भी उस समय में धार्मिक संत और गुरु के नाम से प्रसिद्ध हुए थे, जैसे की शिर्डी के खंडोबा मंदिर का पुजारी महालसापति और उपासनी महाराज।
दुसरे धार्मिक गुरु भी उनका बहुत सम्मान करते थे जैसे की संत बिड़कर महाराज, संत गंगागीर, संत जानकीदास महाराज और सती गोदावरी माताजी।
साईबाबा सभी बाबाओ को अपना भाई कहते थे, विशेषतः अक्कलकोट के स्वामी समर्थ को वे अपना भाई मानते थे।
साईं सत्चरित्र किताब के अनुसार, साईं जब 16 साल के थे तभी ब्रिटिश भारत के महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर जिले के शिर्डी गाँव में आए थे। वे एक सन्यासी बनकर जिन्दगी जी रहे थे, और हमेशा नीम के पेड़ के निचे ध्यान लगाकर बैठे रहते या आसन में बैठकर भगवान की भक्ति में लीन हो जाते थे। श्री साईं सत्चरित्र में गाँव वालो की उनके प्रति की प्रतिक्रिया का भी उल्लेख किया गया है।
गाँव के लोग भी उस 16 साल के लड़के को लगातार ध्यान, लगाता हुआ देख आश्चर्यचकित थे, क्योकि ठंडी और गर्मी का उनके शरीर पर कोई प्रभाव दिखाई नही दे रहा था। दिन में वे किसी से नही मिलते थे और रात में उन्हें किसी का डर नही था।
उनकी मौजूदगी ने गाँव वालो की जिज्ञासा को आकर्षित किया था और रोज़ उन्हें धार्मिक प्रवृत्ति के लोग जैसे महालसापति, अप्पा जोगले और काशीनाथ मिलने आया करते थे। कुछ लोग उन्हें पागल समझते थे तो कुछ लोग उनपर पत्थर भी फेकते थे। इसके बाद साईबाबा ने गाँव छोड़ दिया था और इसके बाद गाँव वालो को उनकी थोड़ी जानकारी मिली थी।
जानकारों के अनुसार से बहुत से संत और फकीरों से मिले थे और जुलाहा की तरह काम करते थे। कहा जाता है की 1857 में रानी लक्ष्मीबाई के समय में भारतीय क्रांति के समय में भी साईबाबा थे। ऐसा माना जाता है की सबसे पहले साईबाबा तीन साल तक शिर्डी रहे थे और फिर एक साल तक गायब हो गये थे और फिर हमेशा के लिए 1858 में शिर्डी वापिस आ गये थे, जिनमे उनके जन्म को 1838 का बताया गया था।

शिर्डी में वापसी
1858 में साईबाबा शिर्डी वापिस आए थे। इस समय वे अलग ही तरह के कपडे पहने हुए थे, उपर उन्होंने घुटनों तक कफनी पोशाक और कपड़ो की ही एक टोपी पहन रखी थी।
एक अनुयायी रामगिर बुआ ने ध्यान से देखने पर पाया की साईबाबा ने एक व्यायामी की तरह कपडे पहने हुए है, कपड़ो के साथ-साथ उनके बाल भी काफी घने और लम्बे थे।
जब लम्बे समय के बाद वे शिर्डी लौटकर आए थे तो लोगो को उनका एक नया रूप देखने मिला था। उनकी पोषाख के अनुसार वे एक मुस्लिम फ़क़ीर लग रहे थे और लोग उन्हें हिन्दू और मुस्लिम दोनों का गुरु मानते थे।
वापिस आने के बाद तक़रीबन 4 से 5 साल तक साईबाबा एक नीम के पेड़ के निचे रहते थे और अक्सर कभी-कभी लम्बे समय के लिए शिर्डी के जंगलो में भी चले जाते थे। लंबे समय तक ध्यान में लगे रहने की वजह से वे कयी दिनों तक लोगो से बात भी नही करते थे।
लेकिन बाद में कुछ समय बाद लोगो ने उन्हें एक पुरानी मस्जिद रहने के लिए दी, वहाँ वे लोगो से भिक्षा मांगकर रहते थे और वहाँ उनसे मिलने रोज़ बहुत से हिन्दू और मुस्लिम भक्त आया करते थे।
मस्जिद में पवित्र धार्मिक आग भी जलाते थे जिसे उन्होंने धुनी का नाम दिया था, लोगो के अनुसार उस धुनी में एक अद्भुत चमत्कारिक शक्तियाँ थी, उस धुनी से ही साईबाबा अपने भक्तो को जाने से पहले उधि देते थे। लोगो के अनुसार साईबाबा द्वारा दी गयी उस उधि में अद्भुत ताकत होती थी।
संत के साथ-साथ वे एक स्थानिक हकीम की भूमिका भी निभाते थे और बीमार लोगो को अपनी धुनी से ठीक करते थे। साईबाबा अपने भक्तो को धार्मिक पाठ भी पढ़ाते थे, और हिन्दुओ को रामायण और भगवत गीता और मुस्लिमो को कुरान पढने के लिए कहते थे।
1910 के बाद साईबाबा की ख्याति मुंबई में फैलती गयी। इसके बाद बहुत से लोग उनके दर्शन करने आते गये क्योकि उन्हें एक चमत्कारिक और शक्तिशाली अवतार और बाबा मानने लगे थे लोग। इसके बाद गाँव वालो ने उनका पहला मंदिर भिवपुरी, कर्जत में बनाया।
साईं बाबा और उनकी महिमा:
- – साईं बाबा को एक चमत्कारी पुरुष, अवतार और भगवान का स्वरुप माना जाता है.
- – इनको भक्ति परंपरा का प्रतीक माना जाता है.
- – साईं बाबा का जन्म और उनसे जुड़ी दूसरी चीजें अभी अज्ञात हैं.
- – इनका मूल स्थान महाराष्ट्र का शिरडी है, जहां पर भक्त इनके स्थान के दर्शन के लिए जाते हैं.
- – साईं को हर धर्म में मान्यता प्राप्त है, हर धर्म के मानने वाले साईं में आस्था रखते हैं.
- – साईं की उपासना बृहस्पतिवार के दिन विशेष रूप से की जाती है.
- – मुख्यतौर पर तीन रूपों में की जाती है साईं की उपासना.
- – चमत्कारी पुरुष के रूप में, भगवान के रूप में और गुरु के रूप में.
- – गुरु के रूप में इनकी पूजा उपासना सबसे उत्तम होती है.
साईं बाबा का जीवन दर्शन और उपदेश:
- – साईं बाबा ने आमतौर पर कोई पूजा पद्धति या जीवन दर्शन नहीं दिया.
- – एक ही ईश्वर और श्रद्धा-सबुरी पर ही उनका विशेष जोर रहा है.
- – लेकिन उनके ग्यारह वचन उनके भक्तों के लिए उनका दर्शन हैं.
- – इन ग्यारह वचनों में जीवन की हर समस्या का समाधान छुपा हुआ है.
- – ये ग्यारह वचन दरअसल साईं बाबा के ग्यारह वरदान हैं.
- – ये वचन अपने आप में अध्यात्म की बड़ी शिक्षाएं समेटे हुए हैं.
साईं बाबा के ग्यारह वचन और उनके अर्थ-
पहला वचन:
दूसरा वचन:
तीसरा वचन:
चौथा वचन:
पांचवां वचन:
छठवां वचन:
सातवां वचन:
आठवां वचन:
नौवां वचन:
दसवां वचन:
ग्यारहवां वचन:

साईं बाबा के अनमोल वचन
- मैं हर एक वस्तु में हूँ और उस वस्तु से परे भी. मैं सभी रिक्त स्थान को भरता हूँ
- सबका मालिक एक है.
- मैं डगमगाता या हिलता नहीं हूँ.
- यदि तुम मुझे अपने विचारों और उद्देश्य की एकमात्र वस्तु रखोगे, तो तुम सर्वोच्च लक्ष्य प्राप्त करोगे.
- अपने गुरु में पूर्ण रूप से विश्वास करें. यही साधना है.
- मैं अपने भक्त का गुलाम हूँ.
- मेरे रहते डर कैसा?
- मेरा काम तो आशीर्वाद देना है.
- मैं तुम्हे अंत तक ले जाऊंगा.
- सम्पूर्ण रूप से ईश्वर में समर्पित हो जाइये.
- मैं निराकार हूँ और मैं सर्वत्र हूँ.
- मेरी शरण में आइये और शांत रहिये. मैं बाकी सब कर दूंगा.
- यदि कोई अपना पूरा समय मुझमें लगाता है और मेरी शरण में आता है तो उसे अपने शरीर या आत्मा के लिए कोई डर नहीं होना चाहिए.
- यदि कोई सिर्फ मुझको देखता है और सिर्फ मेरी लीलाओं को सुनता है व खुद को सिर्फ मुझमें समर्पित करता है तो वह भगवान तक पंहुच जायेगा.
- मैं अपने भक्तों का बुरा नहीं होने दूंगा.
- अगर मेरा भक्त गिरने वाला होता है तो मैं अपने हाथो बढ़ा कर उसे सहारा देता हूँ.
- हमारा कर्तव्य क्या है ? ठीक से व्यवहार करना. ये काफी है.
- जो मुझे प्रेम करते हैं मेरी दृष्टि हमेशा उन पर रहती है.
- तुम जो भी करते हो, तुम चाहे जहाँ भी हो, हमेशा इस बात को याद रखो: मुझे हमेशा इस बात का ज्ञान रहता है कि तुम क्या कर रहे हो.
- मैं अपने लोगों के बारे में दिन रात सोचता हूँ. मैं बार-बार उनके नाम लेता हूँ.
- आप जो कुछ भी देखते हैं उसका संग्रह मैं ही हूँ.
FAQs
साईं बाबा का असली नाम क्या है ?
हरिबाबू भूसारी
साईं बाबा का जनम कहाँ और कब हुआ ?
साईंबाबा का जन्म सन 1838 में पाथरी में हुआ था.
साईं बाबा का देहांत कब हुआ ?
15 अक्टूबर 1918