शनि देव जी की आरती
Table of Contents
जय जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी |
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी ||
जय जय जय शनि देव ||
श्याम अंग वक्र दृष्टि चतुर्भुजा धारी |
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ||
जय जय जय शनि देव ||
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी |
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ||
जय जय जय शनि देव ||
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी |
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ||
जय जय जय शनि देव ||
देव दनुज ऋषि मुनी सुमीरत नर नारी |
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण है तुम्हारी ||
जय जय जय शनि देव ||
हिंदू धर्म में शनि देव को दंडाधिकारी माना गया है। सूर्यपुत्र शनिदेव के बारे में लोगों के बीच कई मिथ्य हैं। लेकिन मान्यता है कि भगवान शनिदेव जातकों के केवल उसके अच्छे और बुरे कर्मों का ही फल देते हैं।
शनि देव की पूजा अर्चना करने से जातक के जीवन की कठिनाइयां दूर होती है। शिव पुराण में वर्णित है कि अयोध्या के राजा दशरथ ने शनिदेव को “शनि चालीसा” से प्रसन्न किया था।
शनि चालीसा निम्न है। शनि साढ़ेसाती और शनि महादशा के दौरान ज्योतिषी शनि चालीसा का पाठ करने की सलाह देते हैं।
श्री शनि देव चालीसा Shri Shani Chalisa
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
हे भगवान श्री शनिदेव जी आपकी जय हो, हे प्रभु, हमारी प्रार्थना सुनें, हे रविपुत्र हम पर कृपा करें व भक्तजनों की लाज रखें। “
आपका बड़ा मस्तक आकर्षक है, आपकी दृष्टि टेढी रहती है ( शनिदेव को यह वरदान प्राप्त हुआ था कि जिस पर भी उनकी दृष्टि पड़ेगी उसका अनिष्ट होगा इसलिए आप हमेशा टेढी दृष्टि से देखते हैं ताकि आपकी सीधी दृष्टि से किसी का अहित न हो)।
आपकी भृकुटी भी विकराल दिखाई देती है। आपके कानों में सोने के कुंडल चमचमा रहे हैं। आपकी छाती पर मोतियों व मणियों का हार आपकी आभा को और भी बढ़ा रहा है।
आपके हाथों में गदा, त्रिशूल व कुठार हैं, जिनसे आप पल भर में शत्रुओं का संहार करते हैं। “
क्योंकि जिस पर भी आप प्रसन्न होते हैं, कृपालु होते हैं वह क्षण भर में ही रंक से राजा बन जाता है।
पहाड़ जैसी समस्या भी उसे घास के तिनके सी लगती है लेकिन जिस पर आप नाराज हो जांए तो छोटी सी समस्या भी पहाड़ बन जाती है। “
आपकी दशा के चलते ही वन में मायावी मृग के कपट को माता सीता पहचान न सकी और उनका हरण हुआ।
उनकी सूझबूझ भी काम नहीं आयी। आपकी दशा से ही लक्ष्मण के प्राणों पर संकट आन खड़ा हुआ जिससे पूरे दल में हाहाकार मच गया था। आपके प्रभाव से ही रावण ने भी ऐसा बुद्धिहीन कृत्य किया व प्रभु श्री राम से शत्रुता बढाई।
आपकी दृष्टि के कारण बजरंग बलि हनुमान का डंका पूरे विश्व में बजा व लंका तहस-नहस हुई। आपकी नाराजगी के कारण राजा विक्रमादित्य को जंगलों में भटकना पड़ा। उनके सामने हार को मोर के चित्र ने निगल लिया व उन पर हार चुराने के आरोप लगे।
इसी नौलखे हार की चोरी के आरोप में उनके हाथ पैर तुड़वा दिये गये। आपकी दशा के चलते ही विक्रमादित्य को तेली के घर कोल्हू चलाना पड़ा। लेकिन जब दीपक राग में उन्होंनें प्रार्थना की तो आप प्रसन्न हुए व फिर से उन्हें सुख समृद्धि से संपन्न कर दिया।”
भगवान शंकर पर आपकी दशा पड़ी तो माता पार्वती को हवन कुंड में कूदकर अपनी जान देनी पड़ी। आपके कोप के कारण ही भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया।
पांडवों पर जब आपकी दशा पड़ी तो द्रौपदी वस्त्रहीन होते होते बची। आपकी दशा से कौरवों की मति भी मारी गयी जिसके परिणाम में महाभारत का युद्ध हुआ।
आपकी कुदृष्टि ने तो स्वयं अपने पिता सूर्यदेव को नहीं बख्शा व उन्हें अपने मुख में लेकर आप पाताल लोक में कूद गए। देवताओं की लाख विनती के बाद आपने सूर्यदेव को अपने मुख से आजाद किया।”
यदि घोड़े पर बैठकर आते हैं तो सुख संपत्ति मिलती है। यदि गधा आपकी सवारी हो तो कई प्रकार के कार्यों में अड़चन आती है, वहीं जिसके यहां आप शेर पर सवार होकर आते हैं तो आप समाज में उसका रुतबा बढाते हैं, उसे प्रसिद्धि दिलाते हैं।
वहीं सियार आपकी सवारी हो तो आपकी दशा से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है व यदि हिरण पर आप आते हैं तो शारीरिक व्याधियां लेकर आते हैं जो जानलेवा होती हैं।
हे प्रभु जब भी कुत्ते की सवारी करते हुए आते हैं तो यह किसी बड़ी चोरी की और ईशारा करती है।
इसी प्रकार आपके चरण भी सोना, चांदी, तांबा व लोहा आदि चार प्रकार की धातुओं के हैं। यदि आप लौहे के चरण पर आते हैं तो यह धन, जन या संपत्ति की हानि का संकेतक है।
वहीं चांदी व तांबे के चरण पर आते हैं तो यह सामान्यत शुभ होता है, लेकिन जिनके यहां भी आप सोने के चरणों में पधारते हैं, उनके लिये हर लिहाज से सुखदायक व कल्याणकारी होते है।”
उस पर भगवान शनिदेव महाराज अपनी अद्भुत लीला दिखाते हैं व उसके शत्रुओं को कमजोर कर देते हैं। जो कोई भी अच्छे सुयोग्य पंडित को बुलाकार विधि व नियम अनुसार शनि ग्रह को शांत करवाता है।
शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष को जल देता है व दिया जलाता है उसे बहुत सुख मिलता है। प्रभु शनिदेव का दास रामसुंदर भी कहता है कि भगवान शनि के सुमिरन सुख की प्राप्ति होती है व अज्ञानता का अंधेरा मिटकर ज्ञान का प्रकाश होने लगता है।”
भगवान शनि देव के मंत्र Lord Shani Dev Mantra in Hindi
शनि देव का तांत्रिक मंत्र ( Tantarik Mantra of Shani Dev)
शनि देव के वैदिक मंत्र (Vedic Mantra of Shani Dev)
शनि देव का एकाक्षरी मंत्र (Ekashari mantra of Shani Dev)
शनि देव का गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra of Shani Dev)
भगवान शनिदेव के अन्य मंत्र (Other Mantra of Bhagwan Shani Dev)
साढ़ेसाती से बचने के मंत्र (Shani Mantra for Shani Dosha)
क्षमा के लिए शनि मंत्र (Shani Mantra in Hindi)
अच्छे स्वास्थ्य के लिए शनि मंत्र (Shani Mantra for Health in Hindi)
शनि देव की पूजा के समय निम्न मंत्रों का प्रयोग करना चाहिए
भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें अर्घ्य समर्पण करना चाहिए
इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनि देव को प्रज्वलीत दीप समर्पण करना चाहिए-
इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान शनिदेव को यज्ञोपवित समर्पण करना चाहिए और उनके मस्तक पर काला चन्दन (काजल अथवा यज्ञ भस्म) लगाना चाहिए
इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनि देव को पुष्पमाला समर्पण करना चाहिए
भगवान शनि देव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें वस्त्र समर्पण करना चाहिए
शनि देव की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें सरसों के तेल से स्नान कराना चाहिए
सूर्यदेव पुत्र भगवान श्री शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए पाद्य जल अर्पण करना चाहिए
भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें आसन समर्पण करना चाहिए
इस मंत्र के द्वारा भगवान श्री शनिदेव का आवाहन करना चाहिए
शनि देव के 108 नाम
- शनैश्चर- धीरे- धीरे चलने वाला
- शान्त- शांत रहने वाला
- सर्वाभीष्टप्रदायिन्- सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला
- शरण्य- रक्षा करने वाला
- वरेण्य- सबसे उत्कृष्ट
- सर्वेश- सारे जगत के देवता
- सौम्य- नरम स्वभाव वाले
- सुरवन्द्य- सबसे पूजनीय
- सुरलोकविहारिण् – सुरह्स की दुनिया में भटकने वाले
- सुखासनोपविष्ट – घात लगा के बैठने वाले
- सुन्दर- बहुत ही सुंदर
- घन – बहुत मजबूत
- घनरूप – कठोर रूप वाले
- घनाभरणधारिण् – लोहे के आभूषण पहनने वाले
- घनसारविलेप – कपूर के साथ अभिषेक करने वाले
- खद्योत – आकाश की रोशनी
- मन्द – धीमी गति वाले
- मन्दचेष्ट – धीरे से घूमने वाले
- महनीयगुणात्मन् – शानदार गुणों वाला
- मर्त्यपावनपद – जिनके चरण पूजनीय हो
- महेश – देवो के देव
- छायापुत्र – छाया का बेटा
- शर्व – पीड़ा देना वेला
- शततूणीरधारिण् – सौ तीरों को धारण करने वाले
- चरस्थिरस्वभाव – बराबर या व्यवस्थित रूप से चलने वाले
- अचञ्चल – कभी ना हिलने वाले
- नीलवर्ण – नीले रंग वाले
- नित्य – अनन्त एक काल तक रहने वाले
- नीलाञ्जननिभ – नीला रोगन में दिखने वाले
- नीलाम्बरविभूशण – नीले परिधान में सजने वाले
- निश्चल – अटल रहने वाले
- वेद्य – सब कुछ जानने वाले
- विधिरूप – पवित्र उपदेशों देने वाले
- विरोधाधारभूमी – जमीन की बाधाओं का समर्थन करने वाला
- भेदास्पदस्वभाव – प्रकृति का पृथक्करण करने वाला
- वज्रदेह – वज्र के शरीर वाला
- वैराग्यद – वैराग्य के दाता
- वीर – अधिक शक्तिशाली
- वीतरोगभय – डर और रोगों से मुक्त रहने वाले
- विपत्परम्परेश – दुर्भाग्य के देवता
- विश्ववन्द्य – सबके द्वारा पूजे जाने वाले
- गृध्नवाह – गिद्ध की सवारी करने वाले
- गूढ – छुपा हुआ
- कूर्माङ्ग – कछुए जैसे शरीर वाले
- कुरूपिण् – असाधारण रूप वाले
- कुत्सित – तुच्छ रूप वाले
- गुणाढ्य – भरपूर गुणों वाला
- गोचर – हर क्षेत्र पर नजर रखने वाले
- अविद्यामूलनाश – अनदेखा करने वालो का नाश करने वाला
- विद्याविद्यास्वरूपिण् – ज्ञान करने वाला और अनदेखा करने वाला
- आयुष्यकारण – लम्बा जीवन देने वाला
- आपदुद्धर्त्र – दुर्भाग्य को दूर करने वाले
- विष्णुभक्त – विष्णु के भक्त
- वशिन् – स्व-नियंत्रित करने वाले
- विविधागमवेदिन् – कई शास्त्रों का ज्ञान रखने वाले
- विधिस्तुत्य – पवित्र मन से पूजा जाने वाला
- वन्द्य – पूजनीय
- विरूपाक्ष – कई नेत्रों वाला
- वरिष्ठ – उत्कृष्ट
- गरिष्ठ – आदरणीय देव
- वज्राङ्कुशधर – वज्र-अंकुश रखने वाले
- वरदाभयहस्त – भय को दूर भगाने वाले
- वामन – (बौना ) छोटे कद वाला
- ज्येष्ठापत्नीसमेत – जिसकी पत्नी ज्येष्ठ हो
- श्रेष्ठ – सबसे उच्च
- मितभाषिण् – कम बोलने वाले
- कष्टौघनाशकर्त्र – कष्टों को दूर करने वाले
- पुष्टिद – सौभाग्य के दाता
- स्तुत्य – स्तुति करने योग्य
- स्तोत्रगम्य – स्तुति के भजन के माध्यम से लाभ देने वाले
- भक्तिवश्य – भक्ति द्वारा वश में आने वाला
- भानु – तेजस्वी
- भानुपुत्र – भानु के पुत्र
- भव्य – आकर्षक
- पावन – पवित्र
- धनुर्मण्डलसंस्था – धनुमंडल में रहने वाले
- धनदा – धन के दाता
- धनुष्मत् – विशेष आकार वाले
- तनुप्रकाशदेह – तन को प्रकाश देने वाले
- तामस – ताम गुण वाले
- अशेषजनवन्द्य – सभी सजीव द्वारा पूजनीय
- विशेषफलदायिन् – विशेष फल देने वाले
- वशीकृतजनेश – सभी मनुष्यों के देवता
- पशूनां पति – जानवरों के देवता
- खेचर – आसमान में घूमने वाले
- घननीलाम्बर – गाढ़ा नीला वस्त्र पहनने वाले
- काठिन्यमानस – निष्ठुर स्वभाव वाले
- आर्यगणस्तुत्य – आर्य द्वारा पूजे जाने वाले
- नीलच्छत्र – नीली छतरी वाले
- नित्य – लगातार
- निर्गुण – बिना गुण वाले
- गुणात्मन् – गुणों से युक्त
- निन्द्य – निंदा करने वाले
- वन्दनीय – वन्दना करने योग्य
- धीर – दृढ़निश्चयी
- दिव्यदेह – दिव्य शरीर वाले
- दीनार्तिहरण – संकट दूर करने वाले
- दैन्यनाशकराय – दुख का नाश करने वाला
- आर्यजनगण्य – आर्य के लोग
- क्रूर – कठोर स्वभाव वाले
- क्रूरचेष्ट – कठोरता से दंड देने वाले
- कामक्रोधकर – काम और क्रोध का दाता
- कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारण – पत्नी और बेटे की दुश्मनी
- परिपोषितभक्त – भक्तों द्वारा पोषित
- परभीतिहर – डर को दूर करने वाले
- भक्तसंघमनोऽभीष्टफलद – भक्तों के मन की इच्छा पूरी करने वाले
- निरामय – रोग से दूर रहने वाला
- शनि – शांत रहने वाला
ज्योतिष शास्त्र में शनि का जिक्र होते ही व्यक्ति के मन में भय व शंका का प्रादुर्भूत होता है। ये क्रूर ग्रह थोड़ी-सी स्तुति से तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं।
महर्षि पिप्लाद ने शनि की संतुष्टि के लिए दस नामों की रचना की है। इन नामों का उच्चारण प्रतिदिन प्रातःकाल स्नान करके करने से शनि की प्रतिकूलता, उनकी साढ़ेसाती, शनि का ढैया आदि में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होकर उनकी कृपा प्राप्त होती है।
नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय नमोऽस्तुते।
नमस्ते बभ्रुरुपाय कृष्णाय नमोऽस्तुते॥
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकायच।
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥
नमस्ते मंदसंज्ञाय शनैश्चर नमोऽस्तुते।
प्रसादं कुरू देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥
शनिदेव का मंदिर शनि शिंगणापुर Shani Temple
भारत भर में शनिदेव के कई पीठ है किंतु तीन ही प्राचीन और चमत्कारिक पीठ है, जिनका बहुत महत्व है। उक्त तीन पीठ पर जाकर ही पापों की क्षमा मांगी जा सकती है। जनश्रुति है कि उक्त स्थान पर जाकर ही लोग शनि के दंड से बच सकते हैं, किसी अन्य स्थान पर नहीं।
जीवन में किसी भी तरह की कठिनाई हो या शनि ग्रह का प्रकोप है, लेकिन यहां जाकर लोग भयमुक्त हो जाते हैं। मान्यता अनुसार भक्त को तत्काल लाभ मिलता है। कहते हैं कि पिछले कई हजार वर्षों से यह पीठ आज भी ज्यों के त्यों हैं और आज भी यहां चमत्कार घटित होते रहते हैं। आओ हम जानते हैं कि वे तीन पीठ कहां स्थित है।
(1) शनि शिंगणापुर : महाराष्ट्र के एक गांव शिंगणापुर में स्थित है शनि भगवान का प्राचीन स्थान। शिंगणापुर गांव में शनिदेव का अद्भुत चमत्कार है। इस गांव के बारे में कहा जाता है कि यहां रहने वाले लोग अपने घरों में ताला नहीं लगाते हैं और आज तक के इतिहास में यहां किसी ने चोरी नहीं की है।
ऐसी मान्यता है कि बाहरी या स्थानीय लोगों ने यदि यहां किसी के भी घर से चोरी करने का प्रयास किया तो वह गांव की सीमा से पार नहीं जा पाता है उससे पूर्व ही शनिदेव का प्रकोप उस पर हावी हो जाता है। उक्त चोर को अपनी चोरी कबूल भी करना पड़ती है और शनि भगवान के समक्ष उसे माफी भी मांगना होती है अन्यथा उसका जीवन नर्क बन जाता है।
(2) शनिश्चरा मंदिर : मध्यप्रदेश के ग्वालियर के पास स्थित है शनिश्चरा मंदिर। इसके बारे में किंवदंती है कि यहां हनुमानजी के द्वारा लंका से फेंका हुआ अलौकिक शनिदेव का पिण्ड है। यहां शनिशचरी अमावस्या के दिन मेला लगता है। भक्तजन यहां तेल चढ़ाते हैं, और अपने पहने हुए कपड़े, चप्पल, जूते आदि सभी यहीं छोड़कर घर चले जाते हैं। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से पाप और दरिद्रता से छुटकारा मिल जाता है।
(3) सिद्ध शनिदेव : उत्तरप्रदेश के कोसी से छह किलोमीटर दूर कौकिला वन में स्थित है सिद्ध शनिदेव का मंदिर। इसके बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहां शनिदेव के रूप में भगवान कृष्ण विद्यमान रहते हैं।
मान्यता है कि जो इस वन की परिक्रमा करके शनिदेव की पूजा करेगा वहीं कृष्ण की कृपा पाएंगे और उस पर से शनिदेव का प्रकोप भी हठ जाएगा।
शनिदेव कैसे हुआ जन्म और कैसे टेढ़ी हुई नजर Shani Birth Story
अक्सर शनि का नाम सुनते ही शामत नजर आने लगती है, सहमने लग जाते हैं, शनि के प्रकोप का खौफ खा जाते हैं। कुल मिलाकर शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है लेकिन असल में ऐसा है नहीं।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि न्यायधीश या कहें दंडाधिकारी की भूमिका का निर्वहन करते हैं। वह अच्छे का परिणाम अच्छा और बूरे का बूरा देने वाले ग्रह हैं। अगर कोई शनिदेव के कोप का शिकार है तो रूठे हुए शनिदेव को मनाया भी जा सकता है।
शनि जयंती का दिन तो इस काम के लिये सबसे उचित माना जाता है। आइये जानते हैं शनिदेव के बारे में, क्या है इनके जन्म की कहानी और क्यों रहते हैं शनिदेव नाराज।
शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशीखंड में जो कथा मिलती वह कुछ इस प्रकार है। राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ।
सूर्यदेवता का तेज बहुत अधिक था जिसे लेकर संज्ञा परेशान रहती थी। वह सोचा करती कि किसी तरह तपादि से सूर्यदेव की अग्नि को कम करना होगा।
जैसे तैसे दिन बीतते गये संज्ञा के गर्भ से वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना तीन संतानों ने जन्म लिया।
संज्ञा अब भी सूर्यदेव के तेज से घबराती थी फिर एक दिन उन्होंने निर्णय लिया कि वे तपस्या कर सूर्यदेव के तेज को कम करेंगी लेकिन बच्चों के पालन और सूर्यदेव को इसकी भनक न लगे इसके लिये उन्होंने एक युक्ति निकाली उन्होंने अपने तप से अपनी हमशक्ल को पैदा किया जिसका नाम संवर्णा रखा।
संज्ञा ने बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी अपनी छाया संवर्णा को दी और कहा कि अब से मेरी जगह तुम सूर्यदेव की सेवा और बच्चों का पालन करते हुए नारीधर्म का पालन करोगी लेकिन यह राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही बना रहना चाहिये।
अब संज्ञा वहां से चलकर पिता के घर पंहुची और अपनी परेशानी बताई तो पिता ने डांट फटकार लगाते हुए वापस भेज दिया लेकिन संज्ञा वापस न जाकर वन में चली गई और घोड़ी का रूप धारण कर तपस्या में लीन हो गई।
उधर सूर्यदेव को जरा भी आभास नहीं हुआ कि उनके साथ रहने वाली संज्ञा नहीं सुवर्णा है। संवर्णा अपने धर्म का पालन करती रही उसे छाया रूप होने के कारण उन्हें सूर्यदेव के तेज से भी कोई परेशानी नहीं हुई।
सूर्यदेव और संवर्णा के मिलन से भी मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) तीन संतानों ने जन्म लिया।
एक अन्य कथा के अनुसार शनिदेव का जन्म महर्षि कश्यप के अभिभावकत्व में कश्यप यज्ञ से हुआ। छाया शिव की भक्तिन थी।
जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कि वे खाने-पीने की सुध तक उन्हें न रही।
भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ मे पल रही संतान यानि शनि पर भी पड़ा और उनका रंग काला हो गया।
जब शनिदेव का जन्म हुआ तो रंग को देखकर सूर्यदेव ने छाया पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता।
मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव बिल्कुल काले हो गये, उनके घोड़ों की चाल रूक गयी।
परेशान होकर सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी इसके बाद भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया।
सूर्यदेव अपने किये का पश्चाताप करने लगे और अपनी गलती के लिये क्षमा याचना कि इस पर उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला।
लेकिन पिता पुत्र का संबंध जो एक बार खराब हुआ फिर न सुधरा आज भी शनिदेव को अपने पिता सूर्य का विद्रोही माना जाता है।
क्यों है शनिदेव की दृष्टि टेढ़ी ?
शनिदेव के गुस्से की एक वजह उपरोक्त कथा में सामने आयी कि माता के अपमान के कारण शनिदेव क्रोधित हुए लेकिन वहीं ब्रह्म पुराण इसकी कुछ और ही कहानी बताता है।
ब्रह्मपुराण के अनुसार शनिदेव भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे। जब शनिदेव जवान हुए तो चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह हुआ।
शनिदेव की पत्नी सती, साध्वी और परम तेजस्विनी थी लेकिन शनिदेव भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में इतना लीन रहते कि अपनी पत्नी को उन्होंनें जैसे भुला ही दिया।
एक रात ऋतु स्नान कर संतान प्राप्ति की इच्छा लिये वह शनि के पास आयी लेकिन शनि देव हमेशा कि तरह भक्ति में लीन थे। वे प्रतीक्षा कर-कर के थक गई और उनका ऋतुकाल निष्फल हो गया।
आवेश में आकर उन्होंने शनि देव को शाप दे दिया कि जिस पर भी उनकी नजर पड़ेगी वह नष्ट हो जायेगा।
ध्यान टूटने पर शनिदेव ने पत्नी को मनाने की कोशिश की उन्हें भी अपनी गलती का अहसास हुआ लेकिन तीर कमान से छूट चुका था जो वापस नहीं आ सकता था अपने श्राप के प्रतिकार की ताकत उनमें नहीं थी।
इसलिये शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे।
क्यों चढ़ाते है शनि देव को तेल
कथा इस प्रकार है शास्त्रों के अनुसार रामायण काल में एक समय शनि को अपने बल और पराक्रम पर घमंड हो गया था।
उस काल में हनुमानजी के बल और पराक्रम की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली हुई थी। जब शनि को हनुमानजी के संबंध में जानकारी प्राप्त हुई तो शनि बजरंग बली से युद्ध करने के लिए निकल पड़े।
एक शांत स्थान पर हनुमानजी अपने स्वामी श्रीराम की भक्ति में लीन बैठे थे, तभी वहां शनिदेव आ गए और उन्होंने बजरंग बली को युद्ध के ललकारा।
युद्ध की ललकार सुनकर हनुमानजी शनिदेव को समझाने का प्रयास किया, लेकिन शनि नहीं माने और युद्ध के लिए आमंत्रित करने लगे। अंत में हनुमानजी भी युद्ध के लिए तैयार हो गए।
दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। हनुमानजी ने शनि को बुरी तरह परास्त कर दिया।
युद्ध में हनुमानजी द्वारा किए गए प्रहारों से शनिदेव के पूरे शरीर में भयंकर पीड़ा हो रही थी। इस पीड़ा को दूर करने के लिए हनुमानजी ने शनि को तेल दिया।
इस तेल को लगाते ही शनिदेव की समस्त पीड़ा दूर हो गई। तभी से शनिदेव को तेल अर्पित करने की परंपरा प्रारंभ हुई।
शनिदेव पर जो भी व्यक्ति तेल अर्पित करता है, उसके जीवन की समस्त परेशानियां दूर हो जाती हैं और धन अभाव खत्म हो जाता है।
जबकि एक अन्य कथा के अनुसार जब भगवान की सेना ने सागर सेतु बांध लिया, तब राक्षस इसे हानि न पहुंचा सकें, उसके लिए पवन सुत हनुमान को उसकी देखभाल की जिम्मेदारी सौपी गई।
जब हनुमान जी शाम के समय अपने इष्टदेव राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्ण कहा- हे वानर मैं देवताओ में शक्तिशाली शनि हूँ।
सुना हैं, तुम बहुत बलशाली हो। आँखें खोलो और मेरे साथ युद्ध करो, मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- इस समय मैं अपने प्रभु को याद कर रहा हूं। आप मेरी पूजा में विघन मत डालिए। आप मेरे आदरणीय है। कृपा करके आप यहा से चले जाइए।
जब शनि देव लड़ने पर उतर आए, तो हनुमान जी ने अपनी पूंछ में लपेटना शुरू कर दिया। फिर उन्हे कसना प्रारंभ कर दिया जोर लगाने पर भी शनि उस बंधन से मुक्त न होकर पीड़ा से व्याकुल होने लगे।
हनुमान ने फिर सेतु की परिक्रमा कर शनि के घमंड को तोड़ने के लिए पत्थरो पर पूंछ को झटका दे-दे कर पटकना शुरू कर दिया।
इससे शनि का शरीर लहुलुहान हो गया, जिससे उनकी पीड़ा बढ़ती गई।
तब शनि देव ने हनुमान जी से प्रार्थना की कि मुझे बधंन मुक्त कर दीजिए। मैं अपने अपराध की सजा पा चुका हूँ, फिर मुझसे ऐसी गलती नही होगी ! तब हनुमान जी ने जो तेल दिया, उसे घाव पर लगाते ही शनि देव की पीड़ा मिट गई।
हनुमानजी की कृपा से शनि की पीड़ा शांत हुई थी, इसी वजह से आज भी शनि हनुमानजी के भक्तों पर विशेष कृपा बनाए रखते हैं।
शनि को तेल अर्पित करते समय ध्यान रखें ये बात
शनि देव की प्रतिमा को तेल चढ़ाने से पहले तेल में अपना चेहरा अवश्य देखें। ऐसा करने पर शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है। धन संबंधी कार्यों में आ रही रुकावटें दूर हो जाती हैं और सुख-समृद्धि बनी रहती है।
शनि पर तेल चढ़ाने से जुड़ी वैज्ञानिक मान्यता
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारे शरीर के सभी अंगों में अलग-अलग ग्रहों का वास होता है। यानी अलग-अलग अंगों के कारक ग्रह अलग-अलग हैं। शनिदेव त्वचा, दांत, कान, हड्डियां और घुटनों के कारक ग्रह हैं।
यदि कुंडली में शनि अशुभ हो तो इन अंगों से संबंधित परेशानियां व्यक्ति को झेलना पड़ती हैं। इन अंगों की विशेष देखभाल के लिए हर शनिवार तेल मालिश की जानी चाहिए।
शनि को तेल अर्पित करने का यही अर्थ है कि हम शनि से संबंधित अंगों पर भी तेल लगाएं, ताकि इन अंगों को पीड़ाओं से बचाया जा सके। मालिश करने के लिए सरसो के तेल का उपयोग करना श्रेष्ठ रहता है।
FAQs
<strong>शनिदेव को सबसे प्रिय राशि कौन सी लगती है?</strong>
तुला
<strong>शनि देव के गुरु कौन थे?</strong>
भगवान शिव शनि देव के गुरु हैं
<strong>शनि देव की पूजा कब करनी चाहिए?</strong>
शनि पूजा के लिए सबसे उत्तम दिन शनिवार को ही माना गया हैं. इस दिन भगवान शनिदेव को तेल चढ़ाना चाहिए और पीपल के पेड़ के निचे दिया जलाएं
<strong>शनि देव की पूजा में कौन सा मंत्र का जाप करना चाहिए?</strong>
ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।