सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी
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यह भारतीय इतिहास तथा हिन्दुओं के महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है। इसे भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है।
गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।

शिव पुराण के अनुसार चन्द्रमा, राजा दक्ष प्रजापति के दामाद थे और उनका विवाह दक्ष प्रजापति की 27 बेटियों से हुआ था।
चन्द्रमा रोहिणी नाम की बेटी से सबसे अधिक प्यार करते थे और यह कारण राजा दक्ष की बाकि बेटियों पर ध्यान नहीं देते थे।
इससे क्रोधित होकर राजा दक्ष ने चन्द्रमा को श्राप दिया था ।
जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने क्षय रोग होने का श्राप दिया था, तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर शिव की तपस्या कर श्राप से मुक्ति पाई थी।
ऐसा भी मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर पर आक्रमण
इसको जितनी बार नष्ट किया उतनी बार ही इसका पुनःनिर्माण भी किया गया ।
यह मंदिर हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी आस्था का प्रतीक है ।
सन 1024 ईस्वी में महमूद ग़ज़नवी ने अपने 5 हज़ार साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया और 25 हज़ार लोगों को कत्ल करके मंदिर की सारी धन दौलत लूट के ले गया था ।
1168 ई. में विजयेश्वर कुमारपल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर का सौन्दर्यीकरण करवाया था।
उसने पवित्र शिवलिंग को भी खंडित कर दिया तथा सारी धन – दौलत लूट ली थी ।
सन 1395 ईसवी में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने मंदिर को जम कर लूटा इसके बाद 1413 ईसवी में उसके पुत्र अहमदशाह ने भी यही किया।
1665 ईसवी में मंदिर को तुड़वाने के बाद जब औरंगज़ेब के देखा कि हिंदु अब भी उस स्थान पर पूजा – अर्चना करने आते है तो उसने 1706 ईसवी में वहां दुबारा हमला करवाया और लोगों को कत्ल कर दिया गया।
उन्होंने सोमनाथ का दौरा किया और समुद्र का जल लेकर नए मंदिर का संकल्प किया। उनके संकल्प के बाद 1950 मंदिर का पुन: निर्माण हुआ।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का निर्माण किसने किया
अत्यंत वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया।
वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है।
मंदिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है।
लोक कथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया।
सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबन्ध किया है।
यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है।
इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है।
इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है। यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप– तीन प्रमुख भागों में विभाजित है।
इसके अबाधित समुद्री मार्ग- त्रिष्टांभ के विषय में ऐसा माना जाता है कि यह समुद्री मार्ग परोक्ष रूप से दक्षिणी ध्रुव में समाप्त होता है। यह हमारे प्राचीन ज्ञान व सूझबूझ का अद्भुत साक्ष्य माना जाता है।