श्री सरस्वती पञ्चकम्

॥ सरस्वतीपञ्चकम् ॥
 
सुरमकुञ्चमध्यगो मरालमध्यशोभितो,
 
नदीतटप्रतिष्ठितः स्थिरप्रशान्तलोचनः ।
 
हृदिस्वरात्मिकास्मरन्मनोयशस्वतीनम-,
 
न्सरस्वतीस्तवं पठन्कदा यतिर्भवाम्यहम् ॥ १॥
 
लसत्सिताम्बुरूहवर्णवस्त्रभासितास्तुतिं,
 
स्फुरद्विभूषणाश्रयाविलासिनाममञ्जरीम् ।
 
त्रिलोकश्रेष्ठसुन्दरीकथाकलापवल्लरीं,
 
सरस्वतीस्तवं पठन्कदा यतिर्भवाम्यहम् ॥ २॥
 
कवित्वकीर्तिबुद्धिवृद्धिशास्त्रज्ञानदास्तुतिं,
 
समीक्षशोचतकेतत्त्वदायिनाममञ्जरीम् ।
 
त्रिलोकवेद्यतत्त्वज्ञानदाविचारवल्लरीं,
 
सरस्वतीस्तवं पठन्कदा यतिर्भवाम्यहम् ॥ ३॥
 
प्रकृष्टपाठशालया सुगेयगीतमालया,
 
परात्मवेदभाषया नितान्तब्रह्मविद्यया ।
 
असङ्ख्ययोगयोगिना प्रतिष्ठिताशिवास्तवं,
सरस्वतीस्तवं पठन्कदा यतिर्भवाम्यहम् ॥ ४॥
 
निशम्य कर्मसम्भवप्रपुण्यपापयुग्मकं,
 
विनश्य गोसमूहजातनश्वरार्तसंसृतिम् ।
 
निपत्य देहगर्वसर्वमानपुञ्जदुर्मतिं,
 
सरस्वतीस्तवं पठन्कदा यतिर्भवाम्यहम् ॥ ५ ॥
 
इति श्री सरस्वती पञ्चकम् सम्पूर्णम् ॥

 

Saraswati Panchakam,श्री सरस्वती पञ्चकम्
श्री सरस्वती पञ्चकम्

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