मनोजवं मारुत तुल्यवेगं ,जितेन्द्रियं,बुद्धिमतां वरिष्ठम् ||
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं , श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ||
आरती किजे हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे |रोग दोष जाके निकट ना झाँके ॥
अंजनी पुत्र महा बलदाई |संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाये |लंका जाये सिया सुधी लाये ॥
लंका सी कोट संमदर सी खाई |जात पवनसुत बार न लाई ॥
लंका जारि असुर संहारे |सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पडे सकारे |आनि संजिवन प्राण उबारे ॥
पैठि पताल तोरि जम कारे| अहिरावन की भुजा उखारे ॥
बायें भुजा असुर दल मारे |दाहीने भुजा सब संत जन उबारे ॥
सुर नर मुनि जन आरती उतारे | जै जै जै हनुमान उचारे ॥
कचंन थाल कपूर लौ छाई | आरती करत अंजनी माई ॥
जो हनुमान जी की आरती गाये | बसहिं बैकुंठ परम पद पायै ॥
लंका विध्वंश किये रघुराई | तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई ॥
आरती किजे हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥