श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् | Vindhyeshwari Stotram

श्रीविन्ध्येश्वरी स्तोत्रम्य एक देवी स्तोत्र है, जिसमें माँ विन्ध्येश्वरी से प्रशंशा और प्रार्थना की जाती है कि वह कैसी दिखती हैं, वह हमारे (मानव जाति) के लिए क्या करती हैं और हम उनका आशीर्वाद कैसे प्राप्त करते हैं। माता विन्धेश्वरी दो अत्यंत क्रूर राक्षसों का नाश करने वाली देवी है। अर्थात् निशुम्भु और शुम्भ का वध माता ने किया था। माता के हाथों में हमारी सुरक्षा के लिए हथियार हैं। वह हमारे जीवन से दुःख, दरिद्रता और कष्टों को भी दूर करती है और हमारे जीवन को सुखी, समृद्ध और शांतिपूर्ण बनाती है। माता विन्धेश्वरी हमारी रक्षा करने और हमारी सहायता करने के लिए भक्त के घर आती हैं। इसलिए हम स्तोत्र पाठ करके उनसे प्रार्थना करते हैं और उनका आशीर्वाद मांगते हैं।

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम्

निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी ।
बनेरणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

त्रिशूल मुण्ड धारिणी, धरा विघात हारिणी ।
गृहे-गृहे निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी ।
वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

लसत्सुलोल लोचनं, लतासनं वरप्रदं ।
कपाल-शूल धारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनी ।
वरा-वराननां शुभां, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

कपीन्द्न जामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप धारिणी ।
जले-थले निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

विशिष्ट शिष्ट कारिणी, विशाल रूप धारिणी ।
महोदरे विलासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

पुंरदरादि सेवितां, पुरादिवंशखण्डितम्‌ ।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीं ॥

Vindhyeshwari Stotram,श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम्
Vindhyeshwari Stotram

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम का हिंदी अर्थ

शुम्भ तथा निशुम्भ का संहार करने वाली, चण्ड तथा मुण्ड का विनाश करने वाली, वन में तथा युद्ध स्थल में पराक्रम प्रदर्शित करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|

त्रिशूल तथा मुण्ड धारण करने वाली, पृथ्वी का संकट हरने वाली और घर-घर में निवास करने वाली भगवती विन्धवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|

दरिद्रजनों का दु:ख दूर करने वाली, सज्जनों का कल्याण करने वाली और वियोगजनित शोक का हरण करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|

सुन्दर तथा चंचल नेत्रों से सुशोभित होने वाली, सुकुमार नारी विग्रह से शोभा पाने वाली, सदा वर प्रदान करने वाली और कपाल तथा शूल धारण करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|

प्रसन्नतापूर्वक हाथ में गदा धारण करने वाली, कल्याणमयी, सर्वविध मंगल प्रदान करने वाली तथा सुरुप-कुरुप सभी में व्याप्त परम शुभ स्वरुपा भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|

ऋषि श्रेष्ठ के यहाँ पुत्री रुप से प्रकट होने वाली, ज्ञानलोक प्रदान करने वाली, महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती रूप से तीन स्वरुपों धारण करने वाली और जल तथा स्थल में निवास करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|

विशिष्टता की सृष्टि करने वाली, विशाल स्वरुप धारण करने वाली, महान उदर से सम्पन्न तथा व्यापक विग्रह वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|

इन्द्र आदि देवताओं से सेवित, मुर आदि राक्षसों के वंश का नाश करने वाली तथा अत्यन्त निर्मल बुद्धि प्रदान करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|

श्रीविन्ध्येश्वरीस्तोत्रं सम्पूर्णम्

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् PDF