श्री गुरु गोरक्षनाथ जी की संध्या आरती

श्री गुरु गोरक्षनाथ जी की संध्या आरती

ऊँ गुरुजी शिव जय जय गोरक्ष देवा। श्री अवधू हर हर गोरक्ष देवा।
सुर नर मुनि जन ध्यावत, सुर नर मुनि जन सेवत।
सिद्ध करैं सब सेवा, श्री अवधू संत करैं सब सेवा।
शिव जय जय गोरक्ष देवा ।।1।।

ऊँ गुरुजी योग युगति कर जानत मानत ब्रह्म ज्ञानी।
श्री अवधू मानत सर्व ज्ञानी।
सिद्ध शिरोमणि राजत संत शिरोमणि साजत।
गोरक्ष गुण ज्ञानी, श्री अवधू गोरक्ष सर्व ज्ञानी।
शिव जय जय गोरक्ष देवा ।।2।।

ऊँ गुरुजी ज्ञान ध्यान के धारी गुरु सब के हो हितकारी।
श्री अवधू सब के हो सुखकारी।
गो इन्द्रियों के रक्षक सर्व इन्द्रियों के पालक।
राखत सुध सारी, श्री अवधू राखत सुध सारी।
शिव जय जय गोरक्ष देवा ।।3।।

ऊँ गुरु जी रमते श्रीराम सकल युग माही छाया है नाहीं।
श्री अवधू माया है नाहीं।
घट घट के गोरक्ष व्यापै सर्व घट श्री नाथ जी विराजत।
सो लक्ष मन मांही श्री अवधू सो लक्ष दिल मांही।
शिव जय जय गोरक्ष देवा ।।4।।

ऊँ गुरुजी भस्मी गुरु लसत सरजनी है अंगे।
श्री अवधू जननी है संगे।
वेद उच्चारे सो जानत योग विचारे सो मानत।
योगी गुरु बहुरंगा श्री अवधू बोले गोरक्ष सर्व संगा।
शिव जय जय गोरक्ष देवा ।।5।।

ऊँ गुरु जी कंठ विराजत सेली और श्रृंगी जत मत सुखी बेली।
श्री अवधू जत सत सुख बेली।
भगवा कंथा सोहत-गेरुवा अंचला सोहत ज्ञान रतन थैली।
श्री अवधू योग युगति झोली।
शिव जय जय गोरक्ष देवा ।।6।।

ऊँ गुरु जी कानों में कुण्डल राजत साजत रवि चन्द्रमा।
श्री अवधू सोहत मस्तक चन्द्रमा।
बाजत श्रृंगी नादा-गुरु बाजत अनहद नादा-गुरु भाजत दुःख द्वन्दा।
श्री अवधू नाशत सर्व संशय
शिव जय जय गोरक्ष देवा ।।7।।

ऊँ गुरु जी निद्रा मारो गुरु काल संहारो-संकट के हो बैरी
श्री अवधू दुष्टन के हो बैरी
करो कृपा सन्तन पर-गुरु दया पालो भक्तन पर शरणागत तुम्हारी
शिव जय जय गोरक्ष देवा ।।8।।

ऊँ गुरु जी इतनी श्रीनाथ जी की संध्या आरती
निश दिन जो गावे-श्री अवधू सर्व दिन रट गावे
वर्णी राजा रामचन्द्र स्वामी गुरु जपे राजा रामचन्द्र योगी
मनवांछित फल पावे श्री अवधू सुख सम्पत्ति फल पावे।
शिव जय जय गोरक्ष देवा ।।9।।

—समाप्त—

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