माता सीता की जन्म कथा

रामायण में माता सीता को जानकी कहकर भी संबोधित किया गया है। देवी सीता मिथिला के राजा जनक की पुत्री थीं इसलिए उन्हें जानकी भी कहा जाता है। सीता मिथिला (सीतामढ़ी, बिहार) में जन्मी थी, यह स्थान आगे चलकर सीतामढ़ी से विख्यात हुआ। देवी सीता मिथिला के नरेश राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थीं।

माता सीता को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है जिनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र और स्वंय भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम से हुआ था।

वाल्मिकी रामायण के अनुसार, मिथिला में एक बार अकाल पड़ा था. तब राजा जनक को सलाह दिया गया कि वे वैदिक अनुष्ठान करके खेतों में स्वयं हल चलाएंगे तो वर्षा होगी और अकाल खत्म हो जाएगा. वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को राजा जनक खेत में हल चला रहे थे, उसी दौरान एक बक्से या कलश से उनका हल टकराया.

उन्होंने उसे धरती से निकाला और खोला. उसमें एक कन्या शिशु थी, जिसका नाम सीता रखा गया. इस तरह से माता सीता की उत्पत्ति हुई थी. सीता का जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ था. वे धरती से प्राप्त हुई थीं, इसलिए उनको धरती की पुत्री भी कहते हैं.

सीता जी के जन्म के विषय में एक कथा प्रचलित है जिसके आधार पर स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि वह कौन थी और क्यों रावण की मृत्यु का कारण बनी।

ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार देवी सीता रावण और मंदोदरी की पुत्री थी|,सीता जी वेदवती नाम की एक स्त्री का पुनर्जन्म थी। वेदवती विष्णु जी की भक्त थी और वह उन्हें पति के रूप में पाना चाहती थी। इसलिए विष्णु जी को प्रसन्न करने के लिए वेदवती ने कठोर तपस्या की

एक दिन रावण वहां से निकल रहा था जहां वेदवती तपस्या कर रही थी। वेदवती की सुंदरता को देख कर रावण उस पर मोहित हो गया। रावण ने वेदवती को अपने साथ चलने के लिए कहा। परन्तु वेदवती ने मना कर दिया। वेदवती के मना करने पर रावण को क्रोध आ गया और उसने वेदवती के साथ दुर्व्यवहार करना चाहा। रावण के स्पर्श करते ही वेदवती ने खुद को भस्म कर लिया और रावण को श्राप दिया कि वह रावण की पुत्री के रूप में जन्म लेगी और उसकी मृत्यु का कारण बनेगी।

कुछ समय बाद मंदोदरी ने एक कन्या को जन्म दिया। श्राप से भयभीत रावण ने उस कन्या को जन्म लेते ही सागर में फेंक दिया। सागर की देवी वरुणी ने उस कन्या को धरती की देवी पृथ्वी को सौंप दिया और पृथ्वी ने उस कन्या को राजा जनक और माता सुनैना को सौंप दिया। देवी सीता का विवाह श्री राम के साथ हुआ और रावण द्वारा देवी सीता के अपहरण करने के कारण श्री राम ने रावण का वध कर दिया|

माता सीता के जन्म की एक और कथा प्रचलित है

रामायण के अनुसार रावण ने कहा था कि यदि उसके हृदय में अपनी पुत्री से विवाह की इच्छा उत्पन्न हो तो उसकी पुत्री ही उसकी मृत्यु का कारण बने।

इसी बात को सही साबित करने के लिए एक बार गृत्समद नाम के ऋषि देवी लक्ष्मी को पुत्री रूप में पाने के लिए हर दिन मंत्रोच्चार के साथ कुश के अग्र भाग से एक कलश में दूध की बूंदे डालते थे।

एक दिन जब ऋषि आश्रम में मौजूद नहीं थे तब रावण वहां आया और वहां मौजूद ऋषियों को मारकर उनका रक्त कलश में भर लिया। इस कलश को रावण ने अपने महल में छिपा दिया।

उस समय रावण की पत्नी मंदोदरी उस कलश को लेकर बहुत उत्सुक थी। एक दिन जब रावण महल में नहीं था तब मंदोदरी ने उस कलश को खोलकर देखा। मंदोदरी कलश को उठाकर उसमें रखा हुआ रक्त पी गईं जिससे वह गर्भवती हो गई।

मंदोदरी का यह भेद किसी को पता ना चले इसलिए वह लंका से बहुत दूर अपनी पुत्री को कलश में छुपाकर मिथिला भूमि में छोड़ आई। इस प्रकार सीता जी का जन्म हुआ और वो रावण की पुत्री होने के साथ उनकी मृत्यु का कारण भी बनीं।

माता सीता की जन्म कथा
माता सीता की जन्म कथा