गर्भ गीता | Garbh Geeta

गर्भ गीता स्तुत संवाद गर्भ गीता से लिया गया है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण तथा उनके प्रिय भक्त एवं सखा अर्जुन के मध्य संवाद को दर्शाया गया है। इसमें भगवान कृष्ण अर्जुन के द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं। श्री कृष्ण भगवान जी का वचन है कि जो प्राणी इस गर्भ गीता का सद्भावना से विचार मनन करता है, वह फिर गर्भवास में नहीं आता है। उसे जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है। सभी को गर्भ गीता का अनुशीलन अवश्य करना चाहिए। साथ ही यह मान्यता भी है कि जो गर्भवती महिला गर्भ गीता का श्रवण करती है, उसका गर्भस्थ शिशु अच्छे संस्कार ग्रहण करता है। जन्म लेने के बाद वह आदर्श जीवन व्यतीत करता है।

अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि भगवन क्या कारण है कि किसी जीव को मां के गर्भ में आना पड़ता है तथा भांति-भांति के कष्ट भोगने पड़ते हैं? ऐसा जीव के किन गुण तथा दोषों के कारण होता है? प्राणी अपने जन्म से पूर्व तो कष्ट पाता ही है और फिर जन्म लेते समय भी उसे कष्टों से छुटकारा नहीं मिलता।

उसके बाद आजीवन मृत्यु काल तक उसे रोग, कष्ट आदि का सामना करना पड़ता है। यह सुनकर भगवान मधुसूदन मुस्कराते हुये बोले कि -‘‘ हे श्रेष्ठ धनुर्धारी अर्जुन! मृत्यु लोक में जन्म लेने के पश्चात प्रत्येक जीवात्मा इस संसार की माया से प्रेरित होकर भौतिक संसाधनों के बंधनों में बंध जाती है।

वह अपना मुख्य उद्देश्य जो कि मात्र ईश्वर की प्राप्ति है उसे भूलकर परिवार, पुत्र-पुत्रियों सगे-सम्बन्धियों, आदि के मोह में फंसकर ही रह जाती है। मृत्यु उपरान्त तक इन सभी में फंसे होने के बाद जब जीव का अन्तिम समय आता है तो वह अपनी अधूरी इच्छाओं के बारे में ही सोचते हुये प्राण त्यागता है । और अगले जन्म में अपनी अंतिम चिंतन की वजह से उसी योनि में जीवन पाता है।

गर्भ गीता ज्ञान

अर्जुनोवाच – हे कृष्ण भगवान्! यह प्राणी जो गर्भ-वास में आता है। वह किस दोष के कारण आता है? हे प्रभु जी! जब यह जन्मता है, तब इसको जरा आदि रोग लगते हैं। फिर मृत्य होती है। हे स्वामी! वह कौन-सा कर्म है जिसके करने से प्राणी जन्म मरण से रहित हो जाता है?

श्रीभगवानोवाच – हे अर्जुन! यह मनुष्य जो है सो अन्धा व मूर्ख है जो संसार के साथ प्रीति करता है। यह पदार्थ मैंने पाया है और वह मैं पाऊँगा, ऐसी चिन्ता इस प्राणी के मन से उतरती नहीं। आठ पहर माया को ही मांगता है। इन बातों को करके बार-बार जन्मता और मरता है। वह गर्भ विषे दुःख पाता रहता है।

अर्जुनोवाच – हे श्री कृष्ण भगवान्! यह मन मद मस्त हाथी की भाँति है, तृष्णा इसकी शक्ति है। यह मन तो पाँच इन्द्रियों के वश में है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार इन पाँचों में अहंकार बहुत बली है। सो कौन यल है जिससे मन वश में हो जाए?

श्रीभगवानोवाच – हे अर्जुन! यह मन निश्चय ही हाथी की भाँति है। तृष्णा इसकी शक्ति है। मन पाँच इन्द्रियों के वश में है।अहंकार इनमें श्रेष्ठ है।हे अर्जुन! जैसे हाथी अंकुश (कुण्डा) के वश में होता है। वैसे ही मनरूपी हाथी को वश में करने के लिए ज्ञानरूपी अंकुश है। अहंकार करने से यह जीव नरक में पड़ता है।

अर्जुनोवाच – हे भगवान्! जो एक तुम्हारे नाम के लिये वन खंडों में फिरते हैं। एक वैरागी हुए हैं। एक धर्म करते हैं। इनको कैसे जानें! जो वैष्णव हैं, वे कौन हैं?

श्रीभगवानोवाच – हे अर्जुन! एक वे हैं जो मेरे ही नाम के लिए वनों में फिरते हैं। वे संन्यासी कहलाते हैं। एक वे हैं जो सिर पर जटा बाँधते हैं और अंग पर भस्म लगाते हैं। उनमें मैं नहीं हूँ क्योंकि इनमें अहंकार है इनको मेरा दर्शन दुर्लभ है।

अर्जुनोवाच – हे भगवान्! वह कौन-सा पाप है जिससे स्त्री की मृत्यु हो जाती है? वह कौन सा-पाप है कि जिससे पुत्र मर जाता है? और नपुंसक कौन पाप से होता है?

श्रीभगवानोवाच – हे अर्जुन! जो किसी से कर्ज लेता है और देता नहीं, इस पाप से उसकी औरत मरती है और जो किसी की अमानत रखी हुई वस्तु पचा लेता है उसके पुत्र मर जाते हैं। जो किसी का कार्य किसी के गोचर आये पड़े और वह जबानी कहे कि मैं तेरा कार्य सबसे पहले कर दूंगा.पर समय आने पर उसका कार्य न करे। इस पाप से नपुंसक होता है। ये बड़े पाप हैं।

अर्जुनोवाच – हे भगवान्! कौन पाप से मनुष्य सदैव रोगी रहता है? किस पाप से गधे का जन्म पाता है? स्त्री का जन्म तथा टट्टू का जन्म क्यों कर पाता है और बिल्ली का जन्म किस पाप से होता है?

श्रीभगवानोवाच – हे अर्जुन! जो भी मनुष्य कन्यादान करते हैं, और इस दान में मूल्य लेते हैं, वे दोषी हैं, वे मनुष्य सदा रोगी रहते हैं। जो विषय विकार के वास्ते मदिरा पान करते हैं वे टटू का जन्म पाते हैं। | और जो झूठी गवाही भरते हैं वे औरत का जन्म पाते हैं। जो औरतें रसोई बना के पहले आप भोजन कर लेती हैं और पीछे परमेश्वर को अर्घ्यदान करती हैं तो वे बिल्ली का जन्म पाती हैं और जो मनुष्य अपनी झूठी वस्तु दान करते हैं वे औरत का जन्म पाते हैं। वह गुलाम औरतें होती हैं।

अर्जुनोवाच – हे भगवान! कई मनुष्यों को आपने सुवर्ण दिया है सो उन्होंने कौन-सा पुण्य किया है और कई मनुष्यों को आपने हाथी, घोड़ा, रथ दिये हैं, उन्होंने कौन-सा पुण्य किया है?

श्रीभगवानोवाच – हे अर्जुन! जिन्होंने स्वर्ण दान किया है उनको घोड़े वाहन मिलते हैं। जो परमेश्वर के निमित्त कन्यादान करते हैं सो पुरुष का जन्म पाते हैं।

अर्जुनोवाच – हे भगवान्! जिन पुरुषों के अन्दर विचित्र देह है उन्होंने कौन-सा पुण्य कार्य किया है? किसी-किसी के घर सम्पत्ति है, कोई विद्यावान है, उन्होंने कौन-सा पुण्य कार्य किया है?

श्रीभगवानोवाच – हे अर्जुन! जिन्होंने अन्नदान किया है उनका सुन्दर स्वरूप है। जिन्होंने विद्या दान किया है वे विद्यावान होते हैं। जिन्होंने सन्तों की सेवा की है वे पुत्रवान होते हैं।

अर्जुनोवाच – हे भगवान् ! किसी को धन से प्रीति है, कोई स्त्रियों से प्रीति करते हैं, इसका क्या कारण है समझाकर कहिये।

श्रीभगवानोवाच – हे अर्जुन! धन और स्त्री सब नाश रूप हैं। मेरी भक्ति का नाश नहीं है।

अर्जुनोवाच – हे भगवान्! यह राजपाट किस धर्म के करने से मिलता है? विद्या कौन सा धर्म करने से मिलती है?

श्रीभगवानोवाच – हे अर्जुन! जो प्राणी काशी में निष्काम भक्ति से तप करते हुए देह त्यागते हैं, वे राजा होते हैं और जो गुरु की सेवा करते हैं, वे विद्यावान होते हैं।

अर्जुनोवाच – हे भगवान किसी को धन अचानक बिना किसी परिश्रम से मिलता है सो उन्होंने कौन-सा पुण्य कार्य किया है?

श्रीभगवानोवाच – हे अर्जुन! जिन्होंने गुप्तदान किया है, उनको धन अचानक मिलता है। जिसने परमेश्वर का कार्य और पराया कार्य संवारा है वे मनुष्य रोग से रहित होते हैं।

अर्जुनोवाच – हे भगवान्! कौन पाप से अमली होते हैं और कौन पाप से गूंगे होते हैं और कौन पाप से कुष्ठी होते हैं?

श्रीभगवानोवाच – हे अर्जन! जो आदमी नीच कुल की स्त्री से गमन करते हैं वो अमली होते हैं। जो गुरु से विद्या पढ़कर मुकर जाते हैं सो गूंगे होते हैं। जिन्होंने गौ घात किया है वे कुष्ठी होते हैं।

अर्जुनोवाच – हे भगवान्! जिस किसी पुरुष की देह में रक्त का विकार होता है वह किस पाप से होता है और दरिद्र होते हैं। किसी को खण्ड वायु होती है। और कोई अन्धे होते हैं तो कोई पंगु होते हैं, सो कौन से पाप से रहित होते हैं और कई स्त्रियाँ बाल विधवा होती हैं तो यह किसी पाप से होती हैं।

श्रीभगवानोवाच – हेअर्जुन! जो सदाक्रोधवान रहते हैं, उन्हें रक्त विकार होता है।जोमलीन रहते हैं, वे सदा दरिद्री होते हैं।जो कुकर्मी ब्राह्मण को दान देते हैं, उनको खण्ड वायु होती है। जो पराई स्त्री को नंगी देखते हैं, गुरु की पत्नी को कुदृष्टि से देखते हैं, सो अन्धे होते हैं। जिसने गुरु और ब्राह्मण को लात मारी है, वो लंगड़ा व पंगु होता है। जो औरत अपने पति को छोड़कर पराये पुरुषों से संग करती है, सो वह बाल विधवा होती है।

अर्जुनोवाच – हे भगवन्! तुम पर ब्रह्म हो, तुमको नमस्कार है। पहले मैं आपको सम्बन्धी जानता था परन्तु अब मैं ईश्वर रूप जानता हूँ।हे परब्रह्म! गुरु दीक्षा कैसी होती है, सो कृपा कर मुझको कहो।

श्रीभगवानोवाच – हे अर्जुन! तुम धन्य हो, तुम्हारे माता-पिता भी धन्य हैं। जिनके तुम जैसा पुत्र है। हे अर्जुन! सारे संसार के गुरु जगन्नाथ है। विद्या का गुरु काशी, चारों वर्गों का गुरु संन्यासी है। संन्यासी उसको कहते हैं, जिसने सबका त्याग करके मेरे विषय में मन लगाया है सो ब्राह्मण जगत् गुरु है। हे अर्जुन! यह बात ध्यान देकर सुनने की है। गुरु कैसा करें, जिसने सब इंद्रियाँ जीती हों, जिसको सब संसार ईश्वर मय नजर आता हो और सब जगत से उदास हो। ऐसा गुरु करे जो परमेश्वर को जानने वाला हो और उस गुरु की पूजा सब तरह से करे। हे अर्जुन! जो गुरु का भक्त होता है और जो प्राणी गुरु के सम्मुख होकर भजन करते हैं, उनका भजन करना सफल है। जो गुरु से विमुख हैं उनको सप्त ग्रास मारे का पाप है। गुरु से विमुख प्राणी दर्शन करने योग्य नहीं होते। जो गृहस्थी संसार में गुरु के बिना है वो चांडाल के समान है, जिस तरह मदिरा के भंडार में जो गंगाजल है वह अपवित्र है। इसी तरह गुरु से विमुख व्यक्ति का भजन सदा अपवित्र होता है। उसके हाथ का भोजन देवता भी नहीं लेते। उसके सब कर्म निष्फल हैं। कूकर, सूकर, गदर्भ, काक ये सबकी सब योनियाँ बड़ी खोटी योनियाँ हैं। इन सबसे वह मनुष्य खोटा है, जो गुरु नहीं करता।गुरु बिना गति नहीं होती। वह अवश्य नरक को जायेगा। गुरु दीक्षा बिना प्राणी के सब कर्म निष्फल होते हैं। हे अर्जुन! जैसे चारों वर्णों को मेरी भक्ति करना योग्य है, वैसे गुरु धार के गुरु की भक्ति करना योग्य है। जैसे गंगा नदियों में उत्तम है, सब व्रतों में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ है। वैसे ही हे अर्जुन! शुभ कर्मों में गुरु सेवा उत्तम है, गुरु दीक्षा बिना प्राणी पशु योनि पाता है। जो धर्म भी करता है सो पशु योनि में फल भोगता है। वह चौरासी योनियों में भ्रमण करता रहता है।

अर्जुनोवाच – हे श्री कृष्ण जी भगवान्! गुरु दीक्षा क्या होती है?

श्रीभगवानोवाच – हे अर्जुन! धन्य जन्म है उसका जिसने यह प्रश्न किया है। तू धन्य है। गुरु दीक्षा के दो अक्षर हैं! हरि ॐ। इन अक्षरों को गुरु कहता है। यह चारों वर्णों को अपनाना श्रेष्ठ है। हे अर्जुन! जो गुरु की सेवा करता है, उस पर मेरी प्रसन्नता है। वह चौरासी योनियों से छूट जायेगा। जन्म मरण से रहित हो नरक नहीं भोगता। जो प्राणी गुरु की सेवा नहीं करता वह साढ़े तीन करोड़ वर्ष तक नरक भोगता है। जो गुरु की सेवा करता है, उसको कई अश्वमेघ यज्ञ के पुण्य का फल मिलता है। गुरु की सेवा मेरी सेवा है। हे अर्जुन! हमारे तुम्हारे संवाद को जो प्राणी पढ़ेंगे और सुनेंगे वो गर्भ के दुःख से बचेंगे उनकी चौरासी योनियाँ कट जायेगी।

गर्भ गीता,Garbh Geeta
गर्भ गीता