भ्रामरी स्तोत्रम् |Bhramari Stotram

योगिनी भ्रामरी मंगल ग्रह की माता है। मंगल को भूमिसुत भी कहा जाता है। योगिनी भ्रामरी की उपासना करने से साधक को मंगल ग्रह की शुभता प्राप्त होती है। मन की चिंताओं और परेशानियों का निवारण होता है। मन उत्साह से भर जाता है। मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव समाप्त होते है।

भ्रामरी स्तोत्रम् पाठ

द्विभुजा भ्रामरी श्यामा वर-खट्वांग-धारिणी।
भ्रममाणा दशामध्ये विद्रुमाभा त्रिलोचना ॥

रक्ताम्बरा रक्तवर्णा रक्तमाल्यानुलेपना ।
रक्तनेत्रनखा रक्तरसना रक्तदन्तिका ॥

भ्रमहन्त्री भक्तिलभ्या मनसोद्वेगकारिणी ।
योगिनीवृन्दमध्यस्था भौममाता यशश्विनी ॥

भयदा भयहा दुर्गाऽखीभ्रमणदायिनी ।
द्विसहस्र विभेदेन ज्योतिश्चक्रनिवासिनी ॥

कालिका कामदा काली कमनीय भुजेक्षणा।
कान्तावासिनी कान्ता घृतोदधिनिवासिनी ॥

माक्षिकोदधि संमग्ना यवपर्वतगामिनी।
शर्करा गिररिसल्लीना कृशरान्नविभोजिनी ॥

खेटा खेटानुगा साध्वी खेटपीड़ा विभंजनी ।

फलश्रुति

इतिते कथितं स्तोत्रं सर्वसिद्धि प्रवर्तकम् ।
यस्याऽनुष्ठानमात्रेण नश्यते खेटजं भयम् ॥
योगिनीजं दशादोषं नश्यतेऽत्र न संशयः ।
सत्यं सत्यं पुनः सत्यं न मिथ्यावादिनोवयम् ॥

भ्रामरी स्तोत्रम्,Bhramari Stotram
भ्रामरी स्तोत्रम्