योगिनी धान्या गुरू ग्रह की माता है। इनकी उपासना करने गुरू की दशा से उत्पन्न दुख और पीड़ा का निवारण होता है। ‘स्कन्दपुराण’ में इस का उल्लेख मिलता है जिसके अनुसार सनातन मुनि द्वारा राजा मणिग्रीव को कहा गया है।
नियमित रूप से धान्या स्तोत्रम् का पाठ करने से कुण्ड़ली में गुरू ग्रह की अशुभ स्थिति के कारण होने वाले दुख और पीड़ा का निवारण होता है। पुत्र-पौत्र की प्राप्ति होती है। वंश वृद्धि होती है। गुरू ग्रह के दुष्प्रभाव समाप्त होते है। धन-समृद्धि और वंश वृद्धि के लिये करें दिव्य धान्या स्तोत्रम् का पाठ करना चाहिए।
धान्या स्तोत्रम् पाठ
सनातन मुनि उवाच-
ग्रहाः मातृगणाधीना विज्ञेया विबुधर्षभैः ।
तस्माच्छृणु त्वं वक्ष्यामि धन्या स्तोत्रं धनप्रदम् ॥
स्तोत्र पाठ
धान्या धनप्रदा धान्यराशिस्तथा धान्यरूपिणी।
धनदा धनरूपा च गुरूर्माता गुणेश्वरी ॥
आचार्याणी कुलेशानी दशाचक्र निवासिनि ।
द्विभुजा धर्मरूपा च वराभयविधारिणी ॥
तप्तकांचनवर्णा च त्र्यक्षा पीताम्बरावृता ।
महाजनैश्चान्जलिपुटैर्मुक्तैजीजैः प्रपूरिता ॥
दशाचक्रगता देवी मोदिनी वीरनायिका ।
वृन्दारकसमूहैश्च वन्दिता भुवनेश्वरी ॥
फलश्रुति
इति धान्यास्तवं दिव्यं पठेन्नित्यमनन्यधीः ।
तस्य नश्यन्ति गुरूजा पीड़ायोगिनिसम्भवा ॥
पुत्रं पौत्रं धनं धान्यं लभते च न संशयः ।
वात पित्तदिजा पीड़ा नश्यते पाठमात्रतः ॥
ग्रहभूतपिशाचाश्च डाकिनीशाकिनी गणाः ।
ब्रहाराक्षसवैताला नागगन्धर्वमातरः ॥
छायां तस्य न लन्ति का वार्ता ग्रहस्यणतु ॥