योगिनी संकटा स्तोत्रम् | Sankata Stotra

योगिनी संकटा राहु-केतु ग्रह की माता है। इनकी उपासना करने राहु और केतु की दशा से उत्पन्न दुख और पीड़ा का निवारण होता है। ‘पद्मपुराण’ में लिखे प्रसंग के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि के द्वारा युधिष्ठिर को यह स्तोत्र कहा गया है। संतान प्राप्ति और वंश वृद्धि के लिये करें संकटा स्तोत्रम् का पाठ

नियमित रूप से संकटा स्तोत्रम् का पाठ करने से कुण्ड़ली में राहु और केतु ग्रह की स्थिति के कारण होने वाले दुख और पीड़ा का निवारण होता है। धन-धान्य में वृद्धि होती है। राहु और केतु ग्रह के दुष्प्रभाव समाप्त होते है। इस कलियुग में यह योगिनी स्तोत्र विशेष फल प्रदान करने वाला है।

संकटा स्तोत्रम्

ऋषि मार्कण्डेय उवाच

आनन्दकानने देवी संकटानाम विश्रुता।
वीरेश्वरोत्तरे भागे पूर्वे चन्द्रेश्वरस्य च ॥
श्रृणु नामाष्टकं तस्याः सर्वसिद्धिकरं नृणाम्।

स्तोत्र पाठ

संकटा प्रथमं नाम द्वितीयां विजया तथा ॥

तृतीया कामना प्रोक्तं चतुर्थं दुःखहारिणी।
शर्वाणी पंचमं नाम षष्ठं कात्यायनी तथा ॥

सप्तमं भीमनयना सर्वरोगहराष्टमम् ।
नामाष्टकमिदं पुण्यं सिसंध्यं श्रद्धयान्वितः ॥

यः पठेत् पाठयेद् वाऽपिनरो मुच्येत् संकटात् ।
इत्युक्त्वा तु नरश्रेष्ठ मृषिर्वाराणसी ययौ ॥

इतितस्य वचः श्रुत्वा नारदो हर्षनिर्भरः ।
ततः संपूज्य तां देवी वीरेश्वरवरसमन्विताम् ॥

भुजैस्तु दशादिभर्युक्तां लोचनत्रयभूषिताम् ।
मालाकमण्डलुयुतां पद्म-शंख-गदायुताम् ॥

त्रिशूलडमरूधरां खड्गचर्मविभूषिताम् ।
वरदाभयहस्तां तां प्रणम्य विधिनन्दन ॥

वास्त्रयं गृहीत्वा तुततो विष्णुपुरं ययौ ।

फलश्रुति

एतत्स्तोत्रस्य पठनं पुत्र पौत्र विवर्धनम् ॥

संकष्टनाशनं चैवत्रिषु लोकेषु विश्रुतम् ।
गोपनीयं प्रयत्नेन महावन्ध्या प्रसूतिकृत ॥

योगिनी संकटा स्तोत्रम्,Sankata Stotra
योगिनी संकटा स्तोत्रम्,Sankata Stotra