माँ तारा कवच
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ॐ कारो मे शिर: पातु ब्रह्मारूपा महेश्वरी ।
ह्रींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी ।।
स्त्रीन्कार: पातु वदने लज्जारूपा महेश्वरी ।
हुन्कार: पातु ह्रदये भवानीशक्तिरूपधृक् ।
फट्कार: पातु सर्वांगे सर्वसिद्धिफलप्रदा ।
नीला मां पातु देवेशी गंडयुग्मे भयावहा ।
लम्बोदरी सदा पातु कर्णयुग्मं भयावहा ।।
व्याघ्रचर्मावृत्तकटि: पातु देवी शिवप्रिया ।
पीनोन्नतस्तनी पातु पाशर्वयुग्मे महेश्वरी ।।
रक्त वर्तुलनेत्रा च कटिदेशे सदाऽवतु ।
ललज्जिहव सदा पातु नाभौ मां भुवनेश्वरी ।।
करालास्या सदा पातु लिंगे देवी हरप्रिया ।
पिंगोग्रैकजटा पातु जन्घायां विघ्ननाशिनी ।।
खड्गहस्ता महादेवी जानुचक्रे महेश्वरी ।
नीलवर्णा सदा पातु जानुनी सर्वदा मम ।।
नागकुंडलधर्त्री च पातु पादयुगे तत: ।
नागहारधरा देवी सर्वांग पातु सर्वदा ।।
माँ तारा कवच के लाभ
- माँ तारा कवच का पाठ करने से मनुष्य को हर कार्य में उननति प्राप्त होती है
- यह पाठ करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है
- माँ तारा कवच का पाठ करने से मनुष्य किसी भी मुश्किल स्तिथि में हो माता की कृपा से उसकी हर मुश्किल का समाधान हो जाता है
- माँ तारा का रंग नीला है
- माता तारा जी को नील सरस्वती जी के नाम से भी जाना जाता है
- इस कवच का पाठ करने से मनुष्य बहुत शक्तिशाली हो जाता है
- माँ तारा कवच का पाठ करने से मनुष्य को जादू,टोना से भी मुक्ति मिलती है और शत्रु की पराजय निश्चित होती है
माँ तारा कवच की विधि
- माँ तारा कवच का पाठ रात्रि के समय ही करना चाहिए
- यह पाठ गुप्त तरीके से ही करना चाहिए
- यह पाठ किसी के भी सामने नहीं करना चाहिए
- पक्षिम दिशा में ही आसान लगाकर पाठ करे
- माँ भगवती तारा का ध्यान करके पाठ आरम्भ कर देना चाहिए
- श्रद्धापूर्वक माँ तारा का पाठ करे
- माँ तारा आपकी सब मनोकामना पूर्ण करे
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माता तारा के नाम का मतलब क्या है?
माता तारा के नाम का मतलब “तारने वाली” माँ है
तारा देवी माँ का मंदिर कहा है?
तारा देवी माँ का मंदिर शमशान तारापीठ में है
तारा देवी कवच का पाठ किस दिन करना चाहिए?
तारा देवी कवच का पाठ शुकल पक्ष के दिन किया जाता है