महाशिवरात्रि आदि देव भगवान शिव और मां शक्ति के मिलन का महापर्व है। वैसे तो इस महापर्व के बारे में कई पौराणिक कथाएं मान्य हैं, परन्तु हिन्दू धर्म ग्रन्थ शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता के अनुसार इसी पावन तिथि की महानिशा में भगवान भोलेनाथ का निराकार स्वरूप प्रतीक लिंग का पूजन सर्वप्रथम ब्रह्मा और भगवान विष्णु के द्वारा हुआ|
इस दिन शिव भक्त शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का विधि पूर्वक पूजन करते हैं और रात्रि में जागरण करते हैं।
भक्तगणों द्वारा लिंग पूजा में बेल-पत्र चढ़ाना, उपवास और रात्रि जागरण करना एक विशेष कर्म की ओर इशारा करता है।
इस पावन दिवस पर शिवलिंग का विधि पूर्वक अभिषेक करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
महाशिवरात्रि के अवसर पर रात्रि जागरण करने वाले भक्तों को शिव नाम, ॐ नमः शिवाय, पंचाक्षर मंत्र अथवा शिव स्त्रोत का आश्रय लेकर अपने जागरण को सफल करना चाहिए।

शरीर पर श्मशान की भस्म है, उनके गले में सर्पो की माला, कंठ में विष,कानों में कुंडल,चंद्र मुकुट,माथे पर भसम का तिलक, हाथ में डमरू और त्रिशूल, जटाओ में पावन-गंगा और कमर पर शेर की खाल पहनते है |
शिव बैरागी रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते है और धन-सम्पत्ति प्रदान करते है|
” सुबह सुबह ले शिव का नाम , कर ले बन्धे यह शुभ काम” सुबह सुबह ले शिव का नाम शिव आएंगे तेरे काम ” ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय !
मान्यता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था|
प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं|
इसीलिए इसे महाशिवरात्रि कहा गया है|
देवों के देव महादेव शिवशंकर भोलेनाथ अपने भक्तों के मन की बात बहुत जल्दी सुनते हैं|
मन से पूजन करो तो महादेव शिव बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं|
इसलिए भक्तों में सबसे प्रिय भी हैं देव महादेव है |
वैसे तो हर महीने मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है लेकिन फाल्गुन के महीने की शिवरात्रि को ही महाशिवरात्रि कहते हैं |

महाशिवरात्रि की कथा Mahashivratri Katha
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महाशिवरात्रि की पवित्र, प्राचीन और प्रामणिक कथा जिसके कथन से , सुनने से सब कष्टो से मुक्ति मिलती है
जंगली जानवरों का शिकार करके वह अपने परिवार का पालन पोषण करता था।
वह एक साहूकार का कर्जदार था और उसका ऋण समय पर न चुका सका।
शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी।
शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की।
शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन दिया और साहूकार ने उसके इस बचन को पूरा करने के लिए छोड़ दिया।
अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला पर दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख और प्यास से व्याकुल था।
जंगल में शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल आया था ।
वह जंगल में एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा।
पेड़ पर रात बिताने के लिए पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई।
इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए।
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची।
तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो गलत है, तुम्हे मेरे प्राण चाहिए तो ले लो परंतु इतना समय दे दो की मैं बच्चे को जन्म दे सकूँ और इसके पश्चात शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।’
शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए।
इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया। कुछ ही देर के बाद एक और हिरणी उधर से निकली।
उसे देखने के पश्चात शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा और हिरनी के समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया।
हिरनी को जब आभास हुआ की अनजाने में मौत के समक्ष खड़ी हो गयी है तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया,’हे शिकारी मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं।
कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’
जब वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली,हे शिकारी!’ मैं अपने बच्चो के साथ हूँ , मेरी हत्या के पश्चात यह भी जंगली जानवरो का शिकार बन जायेंगे, मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी यह बचन है मेरा इसलिए इस समय मुझे मत मारो।
इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं और मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे।
उत्तर में हिरणी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी!
मेरा विश्वास करों, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।
शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था |
सुबह होने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा।
यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुख न सहना पड़े।
मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो।
मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।
तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी।
अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो।
मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।’
शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया।
किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई।
उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया।
जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए।
शिव जी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।
शिकारी की कथानुसार महादेव तो अनजाने में किए गए व्रत का भी फल दे देते हैं पर वास्तव में महादेव शिकारी की दया भाव से प्रसन्न हुए। अपने परिवार के कष्ट का ध्यान होते हुए भी शिकारी ने मृग परिवार को जाने दिया।
यह करुणा ही वस्तुत: उस शिकारी को उन पण्डित एवं पूजारियों से उत्कृष्ट बना देती है जो कि सिर्फ रात्रि जागरण, उपवास एव दूध, दही, एवं बेल-पत्र आदि द्वारा शिव को प्रसन्न कर लेना चाहते हैं।
इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव किसी भी प्रकार से किए गए पूजन को स्वीकार कर लेते हैं अथवा भोलेनाथ जाने या अनजाने में हुए पूजन में भेद नहीं कर सकते हैं।
इसका अर्थ यह भी हुआ कि वह किसी तरह के किसी फल की कामना भी नहीं कर रहा था।
उसने मृग परिवार को समय एवं जीवन दान दिया जो कि शिव पूजन के समान है।
शिव का अर्थ ही कल्याण होता है।
उन निरीह प्राणियों का कल्याण करने के कारण ही वह शिव तत्व को जान पाया तथा उसका शिव से साक्षात्कार हुआ।
मासिक शिवरात्रि, प्रथम आदि शिवरात्रि, तथा महाशिवरात्रि और पुराण वर्णित अंतिम शिवरात्रि है-नित्य शिवरात्रि।
वस्तुत: प्रत्येक रात्रि ही ‘शिवरात्रि’ है अगर हम उन परम कल्याणकारी आशुतोष भगवान में स्वयं को लीन कर दें तथा कल्याण मार्ग का अनुसरण करें, और यही शिवरात्रि का सच्चा व्रत है।
शिव कर्मो से किये गए मानवता की पूजा से प्रसन्न होते है !
शिव है शक्ति , शिव है भक्ति, शिव है मुक्ति का धाम, हर करम में शिव शिव , हर कण कण में शिव शिव , शिव के हाथ है सब परिणाम |

महाशिवरात्रि पूजा Mahashivratri Puja Vidhi
शिव पुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि पूजा में 6 वस्तुओ को शिवरात्रि की पूजा में शामिल करना चाहिए जिसके बारे में निचे लिखा है |

शिवलिंग पर गलती से भी न चढ़ाएं ये 5 चीजें
शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है, जो भगवान विष्णु का भक्त था|
इसलिए विष्णु भगवान की पूजा शंख से होती है, शिव की नहीं|
इसलिए तुलसी से शिव जी की पूजा नहीं होती|
यह भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ मान जाता है, इसलिए इसे भगवान शिव को नहीं अर्पित किया जाना चाहिए|
टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है, इसलिए यह शिव जी को नहीं चढ़ता|
महाशिवरात्रि 2024 पर मंत्र जाप
महाशिवरात्रि पर मंत्र जाप करने से शिव बहुत प्रसन्न होते है | महादेव शिव की पूजा अर्चना के वैसे तो कई मंत्र है, जैसे ,
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर ‘ॐ नमः शिवायः’ मंत्र से पूजा करनी चाहिए।
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कोई भी व्रत पूर्ण श्रद्धा रखकर किया जाए तभी सफल होता है।


महा शिवरात्रि 2024 दिनांक और समय
घटना | महा शिवरात्रि 2024 दिनांक और समय |
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महा शिवरात्रि | शुक्रवार, 8 मार्च 2024 |
महा शिवरात्रि निशिथ काल पूजा समय | 12:07 AM से 12:56 AM, 9 मार्च 2024 |
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय | 06:25 PM से 09:28 PM |
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय | 09:28 PM से 12:31 AM, 9 मार्च |
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय | 12:31 AM से 03:34 AM, 9 मार्च |
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय | 03:34 AM से 06:37 AM, 9 मार्च |
चतुर्दशी तिथि आरंभ | 08 मार्च 2024 को 09:57 PM |
चतुर्दशी तिथि समाप्त | 09 मार्च 2024 को 06:17 PM |
शिवरात्रि पारण समय | 09 मार्च 2024 को 06:37 AM से 03:29 PM |
महाशिवरात्री 2024 व्रत विधि
शिवरात्रि व्रत अनुष्ठान महा शिवरात्रि से एक दिन पहले शुरू होता है। महा शिवरात्रि से एक दिन पहले, संभवतः त्रयोदशी पर, भक्तों को केवल एक समय भोजन करना चाहिए। शिवरात्रि के दिन, सुबह की पूजा समाप्त करने के बाद, भगवान शिव के प्रति पूरी भक्ति के साथ पूरे दिन का उपवास रखने का संकल्प लें।
शिवरात्रि का व्रत कठिन है और लोग आत्मनिर्णय का संकल्प लेते हैं और इसे सफलतापूर्वक समाप्त करने के लिए शुरू करने से पहले भगवान का आशीर्वाद मांगते हैं। भक्त घर पर ही महा शिवरात्रि की पूजा कर सकते हैं या किसी मंदिर में जा सकते हैं। आमतौर पर लोग दिन के समय शिव मंदिर जाते हैं और रात के समय घर पर शिव पूजा करते हैं।
पूजा स्थल पर एक शिव लिंगम रखें। पूजा अनुष्ठान करने के लिए गेहूं के आटे या मिट्टी का उपयोग करके अस्थायी शिव लिंग बनाया जा सकता है। शिव लिंग को आकार देने के बाद, लिंग पर दूध, गुलाब जल, चंदन का पेस्ट, दही, शहद, घी, चीनी और पानी चढ़ाकर ‘अभिषेक’ अनुष्ठान करें।
शिव लिंग पर बिल्व पत्रों की माला चढ़ाएं और फिर चंदन या कुमकुम लगाएं और भगवान शिव को धूप-दीप दिखाएं। भक्त शिव लिंग पर मदार का फूल और विभूति भी चढ़ा सकते हैं। शिव लिंग पूजा के बाद, ध्यान करने और भगवान से आशीर्वाद लेने के लिए भगवान शिव मंत्रों का जाप करने का समय है।
महा शिवरात्रि व्रत नियम
- शिवरात्रि का उपवास भोर से शुरू होता है और दिन और रात तक चलता है। व्रत का समापन अगले दिन पंचांग (कैलेंडर) द्वारा सुझाए गए पारण समय के दौरान ही करना चाहिए।
- शिवरात्रि के दौरान रात्रि जागरण से ही व्रत का फल दोगुना हो जाता है। रात्रि जागरण के साथ घर या मंदिर में शिव पूजा भी होनी चाहिए। उपवास के सख्त रूप में भोजन, पेय और पानी से परहेज करना शामिल है। उपवास का हल्का रूप दूध, पानी और फलों का सेवन करने की अनुमति देता है।
- व्रत का सबसे महत्वपूर्ण पहलू बुरे विचारों, बुरी संगति और बुरे शब्दों से दूर रहना है। भक्त को सद्गुणों का अभ्यास करना चाहिए और सभी बुराइयों से दूर रहना चाहिए।
- मंदिर परिसर में रहना, भगवान शिव के नामों का जप करना और भगवान की महिमा सुनना भक्तों के लिए सलाह दी जाने वाली सबसे फायदेमंद गतिविधियाँ हैं।
- उपवास और जागरण का सार इंद्रियों पर नियंत्रण हासिल करना और इच्छाओं पर नियंत्रण करना सीखना है। इस प्रकार प्राप्त मन की शुद्ध अवस्था को भगवान की ओर मोड़ दिया जाता है, जिससे व्यक्ति का शरीर, मन और आत्मा शुद्ध हो जाती है।
FAQs
साल 2024 में महाशिवरात्रि कब है?
साल 2024 में महाशिवरात्रि 08 मार्च 2024 को है
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ?
महा शिवरात्रि भगवान शिव के सम्मान में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। इस दिन भगवान शिव के भक्त एक दिन का व्रत करते हैयह पर्व भगवान शिव और देवी पार्वती की वर्षगांठ के रूप में भी मनाया जाता है
शिवरात्रि पर्व में शिवलिंग पर क्या चढ़ाना चाहिए?
शिवलिंग पर सबसे पहले पंचामृत चढ़ाना चाहिए. पंचामृत यानी दूध, गंगाजल, केसर, शहद और जल से बना हुआ मिश्रण. जो लोग चार प्रहर की पूजा करते हैं उन्हें पहले प्रहर का अभिषेक जल, दूसरे प्रहर का अभिषेक दही, तीसरे प्रहर का अभिषेक घी और चौथे प्रहर का अभिषेक शहद से करना चाहिए