इन्द्र रचित लक्ष्मी स्तोत्र की कहानी
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इन्द्र कृत लक्ष्मी स्तोत्र इसलिए कहा गया है कियुँकि इंद्र भगवान ने महालक्ष्मी का अद्भुत श्रीलक्ष्मी कृपा स्तोत्र लिखा है। जब मुनि दुर्वासा के श्राप से इंद्र की सम्पति तीनो लोकों में शीन हो गयी।
तीनों लोको की लक्ष्मी अदृश्य हो जाने की वजह से इंद्रा का राज न रहा, लक्ष्मी को जाता देख इंद्र ने लक्ष्मी जी की आराधना की। इंद्र ने एक लक्ष्मी स्तोत्र की रचना की जिससे उन्होंने फिर से सब कुछ प्राप्त कर लिया और इसी स्तोत्र को इन्द्र रचित लक्ष्मी स्तोत्र कहते है |
इन्द्र के द्वारा लक्ष्मी स्तोत्र रचने की कहानी कुछ इस प्रकार से है की एक बार देवराज इन्द्र ऐरावत हाथी पर चढ़कर कहीं जा रहे थे और रास्ते में उन्हें दुर्वासा मुनि मिले।
दुर्वासा मुनि ने अपने गले से माला निकालकर देवराज इन्द्र के ऊपर फेंक दी। देवराज इन्द्र ने उसे मामूली माला समझकर उसे अपने वाहन ऐरावत हठी को पहना दिया |
माला की गंध बहुत तीव्र थी और तीव्र गंध से प्रभावित होकर ऐरावत हाथी ने सूंड से माला उतारकर पृथ्वी पर फेंक दी थी । दुर्वासा मुनि ने इसे अपना अपमान समझा और इन्द्र को श्राप दे देते हुए कहा,’ हे इन्द्र! ऐश्वर्य के घमंड में तुमने मेरी दी हुई माला का अपमान किया है। यह माला नहीं, लक्ष्मी का धाम थी। इसलिए तुम्हारे अधिकार में स्थित तीनों लोकों की लक्ष्मी शीघ्र ही अदृश्य हो जाएगी।
महर्षि दुर्वासा के श्राप के प्रभाव से त्रिलोकी श्रीलक्ष्मीहीन हो गयी और इन्द्र की राज्यलक्ष्मी समुद्र में प्रविष्ट हो गई। देवताओं की प्रार्थना से जब वे प्रकट हुईं, तब उनका सभी देवता, ऋषि-मुनियों ने अभिषेक किया।
देवी महालक्ष्मी की कृपा से सम्पूर्ण विश्व समृद्धशाली और सुख-शान्ति से सम्पन्न हो गया। लक्ष्मी देवी की कृपा पाने के लिए इन्द्र ने इस स्तोत्र की रचना की थी |
इन्द्र कृत लक्ष्मी स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
अर्थ – देवराज इन्द्र बोले – भगवती कमलवासिनी को नमस्कार है. देवी नारायणी को बार-बार नमस्कार है. संसार की सारभूता कृष्णप्रिया भगवती पद्मा को अनेकश: नमस्कार है.
अर्थ – कमलरत्न के समान नेत्रवाली कमलमुखी भगवती महालक्ष्मी को नमस्कार है. पद्मासना, पद्मिनी एवं वैष्णवी नाम से प्रसिद्ध भगवती महालक्ष्मी को बार-बार नमस्कार है.
अर्थ – सर्वसम्पत्स्वरुपिणी सर्वदात्री देवी को नमस्कार है. सुखदायिनी, मोक्षदायिनी और सिद्धिदायिनी देवी को बारम्बार नमस्कार है.
अर्थ – भगवान श्रीहरि में भक्ति उत्पन्न करने वाली तथा हर्ष प्रदान करने में परम कुशल देवी को बार-बार नमस्कार है. भगवान श्रीकृष्ण के वक्ष:स्थल पर विराजमान एवं उनकी हृदयेश्वरी देवी को बारम्बार प्रणाम है.
अर्थ – रत्नपद्मे ! शोभने ! तुम श्रीकृष्ण की शोभास्वरुपा हो, सम्पूर्ण सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी एवं महादेवी हो, तुम्हें मैं बार-बार प्रणाम करता हूँ.
अर्थ – शस्य की अधिष्ठात्री देवी एवं शस्यस्वरुपा हो, तुम्हें बारम्बार नमस्कार है. बुद्धिस्वरुपा एवं बुद्धिप्रदा भगवती के लिए अनेकश: प्रणाम है.
अर्थ – देवि ! तुम वैकुण्ठ में महालक्ष्मी, क्षीरसमुद्र में लक्ष्मी, राजाओं के भवन में राजलक्ष्मी, इन्द्र के स्वर्ग में स्वर्गलक्ष्मी, गृहस्थों के घर में गृहलक्ष्मी, प्रत्येक घर में गृहदेवता, गोमाता
सुरभि और यज्ञ की पत्नी दक्षिणा के रूप में विराजमान रहती हो.
अर्थ – तुम देवताओं की माता अदिति हो. कमलालयवासिनी कमला भी तुम्हीं हो. हव्य प्रदान करते समय ‘स्वाहा’ और कव्य प्रदान करने के अवसर पर ‘स्वधा’ का जो उच्चारण होता है, वह तुम्हारा ही नाम है.
अर्थ – सबको धारण करने वाली विष्णुस्वरुपा पृथ्वी तुम्हीं हो. भगवान नारायण की उपासना में सदा तत्पर रहने वाली देवि ! तुम शुद्ध सत्त्वस्वरुपा हो.
अर्थ – तुम में क्रोध और हिंसा के लिए किंचिन्मात्र भी स्थान नहीं है. तुम्हें वरदा, शारदा, शुभा, परमार्थदा एवं हरिदास्यप्रदा कहते हैं.
अर्थ – तुम्हारे बिना सारा जगत भस्मीभूत एवं नि:सार है, जीते-जी ही मृतक है, शव के तुल्य है.
अर्थ – तुम सम्पूर्ण प्राणियों की श्रेष्ठ माता हो. सबके बान्धव रुप में तुम्हारा ही पधारना हुआ है. तुम्हारे बिना भाई भी भाई-बन्धुओं के लिए बात करने योग्य भी नहीं रहता है.
अर्थ – जो तुमसे हीन है, वह बन्धुजनों से हीन है तथा जो तुमसे युक्त है, वह बन्धुजनों से भी युक्त है. तुम्हारी ही कृपा से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त होते हैं.
अर्थ – जिस प्रकार बचपन में दुधमुँहे बच्चों के लिए माता है, वैसे ही तुम अखिल जगत की जननी होकर सबकी सभी अभिलाषाएँ पूर्ण किया करती हो.
अर्थ – स्तनपायी बालक माता के न रहने पर भाग्यवश जी भी सकता है, परंतु तुम्हारे बिना कोई भी नहीं जी सकता. यह बिलकुल निश्चित है.
अर्थ – हे अम्बिके ! सदा प्रसन्न रहना तुम्हारा स्वाभाविक गुण है. अत: मुझ पर प्रसन्न हो जाओ. सनातनी ! मेरा राज्य शत्रुओं के हाथ में चला गया है, तुम्हारी कृपा से वह मुझे पुन: प्राप्त हो जाए.
अर्थ – हरिप्रिये ! मुझे जब तक तुम्हारा दर्शन नहीं मिला था, तभी तक मैं बन्धुहीन, भिक्षुक तथा सम्पूर्ण सम्पत्तियों से शून्य था.
अर्थ – सुरेश्वरि ! अब तो मुझे राज्य दो, श्री दो, बल दो, कीर्ति दो, धन दो और यश भी प्रदान करो.
अर्थ – हरिप्रिये ! मनोवांछित वस्तुएँ दो, बुद्धि दो, भोग दो, ज्ञान दो, धर्म दो तथा सम्पूर्ण अभिलषित सौभाग्य दो.
अर्थ – इसके सिवा मुझे प्रभाव, प्रताप, सम्पूर्ण अधिकार, युद्ध में विजय, पराक्रम तथा परम ऎश्वर्य की प्राप्ति भी कराओ.
पाँच लाख जप करने पर मनुष्यों के लिए यह स्तोत्र सिद्ध हो जाता है|
यदि इस सिद्ध स्तोत्र का कोई निरन्तर एक महीने तक पाठ करे तो वह महान सुखी एवं राजेन्द्र हो जाएगा, इसमें कोई संशय नही|
इन्द्र कृत लक्ष्मी स्तोत्र पढ़ने के लाभ
- धनतेरस से दिवाली तक जो मनुष्य इस स्तोत्र का पांच बार या इससे अधिक पाठ करता है, उस पर लक्ष्मी जी की विशेष कृपा होती है। वह जीवन में धन और धान्य से युक्त होता है।
- कमलगट्टे की माला से लक्ष्मी मंत्र ऊं श्रीं ह्रीं ऊं का जाप भी लाभकारी हैं।
- महालक्ष्मी की कृपा सेे वैभव, सौभाग्य, आरोग्य, ऐश्वर्य, शील, विद्या, विनय, ओज, गाम्भीर्य और कान्ति मिलती है। आश्चर्यजनक रूप से असीम संपदा मिलती है।
- महालक्ष्मी के 11 नामों के साथ इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत शुभ और फलदायक माना गया है। पद्मा, पद्मालया, पद्मवनवासिनी, श्री, कमला, हरिप्रिया, इन्दिरा, रमा, समुद्रतनया, भार्गवी और जलधिजा आदि नामों से पूजित देवी महालक्ष्मी वैष्णवी शक्ति हैं
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